ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
एक राबिया नाम की मुसलमान फकीर स्त्री हुई है। कुरान में कहीं एक वचन है शैतान को घृणा करने के संबंध में। राबिया ने वह वचन काट दिया। कुरान में किसी तरह का संशोधन करना बहुत कुफ्र की, बहुत पाप की बात है। और यह तो हद्द पाप की बात थी कि उसमें किसी वचन को कोई काट ही दे। एक बायजीद नाम फकीर उसके घर ठहरा था। उसने सुबह- सुबह कुरान पढने को मांगी। यह देखकर कि वचन कटा हुआ है बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, यह तरमीम सुधार किसी ने किया है इसमें? यह कौन नासमझ है जो कुरान में भी सुधार करता है? राबिया ने कहा मैंने खुद ही किया है। बायजीद तो दंग हो गया। उसने कहा, पागल हो? राबिया ने कहा, जब से मेरा हृदय शांत हुआ उसमें घृणा है ही नहीं तो अब मैं शैतान को घृणा कैसे करूं? शैतान भी मेरे सामने खड़ा हो जाए तो मैं जितना प्रेम ईश्वर को कर सकती हूं उतना ही उसको कर सकती हूं। क्योंकि वह मेरे भीतर रहा नहीं। अब मैं प्रेम और घृणा करती नहीं। मैं प्रेम से भर गयी हूं तो प्रेम ही होता है। जो ज्ञान से भर गया है, उसे सहज ज्ञान प्रकीर्ण होगा।
हम भी अज्ञान को प्रकीर्ण करते हैं। अगर हम इसको समझ लें तो हम ज्ञानी के ज्ञान को प्रकीर्ण करने को समझ लें हमको पता न भी हो कि आत्मा क्या है, तो भी हम बताने को जरूर किसी को मिल जाएंगे। और उसको बताएंगे कि आत्मा यह है और धर्म यह है। हम अज्ञान को प्रकीर्ण करते हैं, अज्ञान को फैलाते हैं। वैसे ही एक स्थिति ज्ञान की है जब व्यक्ति उपलब्ध हो जाती है तो सहज--जैसे हम अज्ञान को फैलाते रहते हैं वैसे हम ज्ञान को फैलाने लगते हैं। उसमें कोई चेष्टित नहीं है। जगत में जितने लोगों ने भी धर्म को उपलब्ध करके उसके संबंध में किसी को भी इशारा किया हो वे सारे लोग मेरे लिए तीर्थंकर हो जाते हैं। यह भी अपनी बात कह रहा हूं। परपरागत जैसा जैन सोचते हैं, उनका हिसाब वैसा है।
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