ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
जैसे हमारे चित्त की अशांति से हमारा आहार संबंधित है। जितना चित्त अशांत है उतना मादक, उत्तेजक आहार प्रिय होता है। हम सोचते हैं, यह प्रिय होना कोई गलती की बात नहीं है। इसमें चित्त की अशांति के साथ मादक और उत्तेजक आहार प्रिय होगा। और अगर चित्त को बिना बदले कोई आहार को बदलेगा तो बड़ा त्याग मालूम पडे़गा कि भारी कष्ट कर रहे हैं, बड़ा त्याग कर रहे हैं। लेकिन अगर चित्त शांत हो जाए, आहार में एकदम परिवर्तन हो जाए, अपने से परिवर्तन हो जाएगा।
एक महिला मेरे पास, एक बंगाली महिला अभी आती रही, अविवाहित है। वह जो उनकी मां ने आकर बताया कि हमारे बंगालियों में अविवाहित लड़की मास मछली छोडे़ तो अपशगुन समझते हैं। असल में विधवा मांस मछली छोड़ देती हैं इसलिए। उन्होंने आकर मुझसे कहा कि इसने मांस मछली खाना छोड़ दिया तो हमको तो बड़ी परेशानी हो गयी, समाज में बड़ी बदनामी हो गयी। तो आपसे हम प्रार्थना करने आए हैं कि इसको कह दें कि यह खाए। तो मैंने उससे कहा, मैंने तो कभी उसको रोका नहीं कि वह न खाए। इसलिए मैं कोई कहने वाला नहीं हूं कि वह खाए। वह ध्यान करने आती है। ध्यान का यह परिणाम होगा। उस लड़की को मैंने पूछा कि तुमने यह बंद क्यों किया? उसने कहा कि बंद करने का कोई सवाल नहीं है। मुझे आश्वर्य है कि मैं इतने दिनों तक खायी कैसे? जैसे-जैसे मन शांत हुआ है वह मुझे बिलकुल फिजूल सी लगने लगी। इसको कैसे खाऊं, यह सवाल है। इसको खाना नहीं, खाने का तो प्रश्न ही नहीं है। सभी भीड़ को घटनाएं घटीं जिन लोगों ने ध्यान का थोड़ा सा प्रयोग किया उनके आचरण में, व्यवहार में, पच्चीसों बातों में अंतर पड़ना शुरू हो गया। हमारी श्वास जो है, चित्त की अशांति के कारण बार-बार गैर रिदमिक हो जाती है। अनुभव किया होगा, क्रोध में श्वास रिदम टूट जाएगा। तीव्र कामवासना में श्वास का रिदम टूट जाएगा। किसी भी उत्तेजना में श्वास का रिदम टूट जाएगा। श्वास कंपती हुई, झटके से लंबी और छोटी चलने लगेगी। उसमें जो गतिबद्धता है, लयबद्धता है वह विलीन हो जाएगी। वह डिसहार्मोनियस हो जाएगी। तो चौबीस घंटे में हम इतनी बार उत्तेजित होते हैं कि श्वास कई बार डिसहार्मोनियस होकर शरीर को नुकसान पहुँचाती है। उसके प्रतिकार के रूप में प्राणायाम है कि श्वास को हम लयबद्धता दे दें।
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