ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
सहयोगी किसी बात को न मानें। नहीं तो धीरे-धीरे धर्म के अदभुत परिणाम हो गए हैं जगत में, वे सहयोगी बातें बताने की वजह से हो गए हैं। और तब धीरे-धीरे ऐसा होता है कि वह सहयोगी बातें हमारे लिए इतनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। तो मैंने बिलकुल नियमित रूप से उनकी बात करना बंद कर दी है। थोड़ा बहुत सहयोग जरूर मिल सकता है। बाकी मैंने उसकी बात बंद किया है। नहीं तो लोग मुझसे पूछते हैं, आहार कौन सा सहयोगी होगा? कपड़े कौन से सहयोगी होंगे? जरूर कुछ सहयोग हो सकता है। लेकिन मगर उनकी बातें इतनी की गयी हैं कि कुछ लोग तो जिंदगी भर आहार ठीक करने में व्यय कर देते हैं। कुछ लोग हैं जो जिंदगी में कपडे़ कैसे पहनना है, इसमें व्यय कर देते हैं।
अब जैसे जैन हैं, इन्होंने चुकता पच्चीस सौ वर्ष आहार ठीक करने में व्यय किए। चुकता ढाई हजार वर्ष का इनका इतिहास आहार सिद्धि का इतिहास है। उससे आत्मा-वात्मा का कोई संबंध नहीं रहा है। वह एक बहुत गौण बिंदु था जिससे थोड़ा सहयोग मिल सकता था। लेकिन वह इतना ज्यादा आउट आफ प्रपोर्शन महत्वपूर्ण हो गया कि वह किसने बनाया और कैसे बनाया और किसने छुआ और किसने नहीं छुआ, वह इतनी महत्वपूर्ण बात हो गयी कि हमारा साधु करीब-करीब अपने जीवन का अधिकतम हिस्सा खाने की शोध में व्यय करता है, आत्मा की शोध में नहीं। वह सारे अनुपात से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया। वैसा ही प्राणायाम और दूसरी चीजें-- जो कुछ संप्रदायों में अतिशय महत्वपूर्ण हो गयीं और तब यह हो गया कि कुछ साधु बेचारे दिन रात व्यायाम करने में व्यर्थ करते हैं, आत्मा की शोध में नहीं। और हमारा चित्त इतना ज्यादा डिसेप्टिव है, इतना ज्यादा वंचक है कि अगर उसे कोई भी चीज पकड़ा दी जाए तो वह मूल पर जाने की बजाए--वह तो जाना नहीं चाहता, मूल पर जाने में उसकी मृत्यु है। जो हमारा माइंड है, वह पूरा बचना चाहता है कि कहीं ध्यान में न चला जाए। तो कोई भी बचने का उसको अगर थोड़ा रास्ता मिल जाए, मूल से हटने का, तो तत्काल उसको पकड़ लेता है। सोचता है, पहले इसको पूरा कर लूं तब तो असली बात करेंगे। और जब यह पूरी कभी होगी नहीं, असली बात होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठेगा। इसलिए मैंने सख्ती से यह तय किया कि कोई सहयोगी नहीं। बात इतनी ही करनी तो इतनी ही बात करनी है। इतना जरूर मेरा अनुभव कि अगर इसका प्रयोग जारी किया तो जो चीजें सहयोगी हैं, धीरे-धीरे वे अपने आप आती जाएंगी। अगर इसका ठीक से प्रयोग किया तो थोडे़ दिन में आपको पता चलेगा कि कि श्वास लेने का आपका ढंग बदल गया। थोडे़ दिन में आपको पता चलेगा, आपका सोने का ढंग बदल गया। थोडे़ दिन में आपको पता चलेगा, आपके भोजन का ढंग बदल गया। यह आपको अचानक पता चलेगा क्योंकि चित्त जैसे शांत होगा चित्त की अशांति में जो जो चीजें संबंधित थी, वे विलीन होने लगीं।
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