ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
जीवन और शरीर के बाबत तो मेरी धारणा यह है कि वह बहुत सहज, निसर्ग, जीने देना चाहिए। जितना सहज उसको निसर्गत जीने दें जितना उसमें कुछ उल्टा सीधा न करें उतना अच्छा है। प्राणायाम का उतना मूल्य नहीं है जितना स्वच्छ वायु का शरीर में पहुँच जाने का मूल्य है। वह कभी घंटे भर के लिए खाली स्वच्छ स्थान पर बैठकर धीमे से गहरी श्वास ले लें तो शरीर को लाभ पहुँचाएगा। और श्वास की जो रिदम है वह मन को शांत करने में सहयोगी हो जाती है। असल में सब रिदम शांत लाती है किसी तरह की रिदम हो, किसी तरह की गतिबद्धता हो वह शांति लाती है।
वहाँ बर्मा में या कुछ और मुल्कों में वह ध्यान के लिए अनिवार्य मानते हैं, श्वास में रिदम पैदा करना। आधा घंटे को बैठ जाएं और श्वास के आने जाने को देखते रहें। श्वास भीतर गई तो स्मरणपूर्वक भीतर जाने दें, बाहर गयी तो स्मरण पूर्वक बाहर जाने दें। फिर भीतर गयी तो स्मरण पूर्वक। वह जागरूक का प्रयोग करें। तो उसमें दोहरे फायदे होंगे। श्वास थोड़ी देर में रिदम पकड़ लेगी। रिदम का परिणाम स्वास्थ्य पर अच्छा होगा। और दूसरा, वह जो मैं जागरूकता कह रहा हूं वह श्वास के माध्यम से जागरूकता विकसित होने लगेगी। और वह जागरूकता जो श्वास के संबंध में विकसित हो गए, उसी जागरूकता का प्रयोग मन के संबंध में, विचार के संबंध में किया जा सकता है।
और सच तो यह है कि अगर आप श्वास के प्रति भी जागरूक हो जाएं तो भी चित्त में विचार शून्य हो जाएंगे। श्वास और विचार बंधे हुए हैं। अगर पांच मिनट बैठकर आप श्वास को देखते रहें-- श्वास प्रश्वास को, आप अचानक पाएंगे, मन शून्य हो गया आखिर है किसी भी चीज के प्रति जागरूकता का प्रयोग करें तो चित्त शून्य हो जाएगा। अगर एक हाथ को यहां तक ले जाए और होश से देखते रहे तो आप पाएंगे कि चित्त शून्य हो गया। अगर आप रास्ते पर चलें और कदम-कदम पर जागरूकता रखें, बांया पैर उठा और नीचे गया, दांया पैर उठा और नीचे गया पूरा होश रखें तो आप एक पांच मिनट बाद पाएंगे कि आप चल रहे हैं और चित्त शून्य हो गया है। जहां भी जागरूकता का प्रयोग कर लें, वह चित्त शून्य होगा। मूर्च्छा चित्त है जागरूकता चित्त शून्यता है।
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