कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
पेड़
हम हैं ऐसे पेड़ किसी के आँगन के
झूले जिस पर नहीं पड़े हैं सावन के
अधर हमारे जनम-जनम से प्यासे हैं
देह हमारी सावन में भी झुलसी है
हमको कोई अर्ध्य नहीं देने आता
हमसे फिर अच्छी आँगन की तुलसी है
जाने कितने विषधर तन से लिपटे हैं
वैसे तो हम पेड़ नहीं हैं चन्दन के
जब भी महकी हवा बदन को छूती है
जाने कैसा-कैसा मन हो जाता है
अन्तर मन में सुधियों रास रचाती हैं
सूना आँगन वृन्दावन हो जाता है
तितली जब फूलों से बातें करती है
आते हैं तब याद हमें दिन बचपन के
नीड़ नहीं है कोई अपनी बाहों में
हमसे तो अब पंछी भी कतराते हैं
गूँगी पीर हमारी कोई क्या जाने
हम उनको आवाज़ नहीं दे पाते हैं
हमसे मिलने कभी बहारें आयेंगी
इस आशा में बीत रहे दिन जीवन के
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