कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
समझदार हर आदमी, करता यही विचार।
वैतरणी संसार की, कैसे होगी पार।।161
मेहनतकश तो धूप में, जला रहे हैं खून।
ठेके जिनके पास हैं, रहते देहरादून।।162
यूँ, तो मंदिर के सभी, खुले हुये हैं द्वार।
लेकिन सब को है कहाँ, दर्शन का अधिकार।।163
पतझर हो मधुमास हो, लगते एक समान।
सारे 'मौसम हो गये कितने बेईमान।।164
निर्धन का तो रोग भी, वना कोढ़ में खाज।
बिन पैसे अब डाक्टर, करते कहीं इलाज।।165
बाल्मीकि के जाप से, निकला ये परिणाम।
श्रद्धा होनी चाहिये, मरा कहो या राम।।166
मन के काग़ज पर अगर, लिख लो सीता-राम।
घर बैठे मिल जायेंगे, तुमको चारों धाम।।167
चाहे वो आशीष दें, चाहे मारें बाण।
रघुनन्दन के हाथ से, होता है कल्याण।।168
जिस गुलशन के फूल हैं, सबके नबी-रसूल।
मेरे मत में राम हैं, उसी चमन के फूल।।169
जिसके ऊपर लिख दिया, सिर्फ राम का नाम।
वे पत्थर करने लगे, नौका वाला काम।।170
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