नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
ईश्वरदास की हिम्मत न हुई कि नजदीक जाए, दूर से ही देखकर लौट आया और राव से सब माजरा सुनाया।
राव जी– (झुंझालाकर) ‘‘क्या भट्टानी जी बुर्ज में जा बैठीं? यह क्या हरकत की?’ ईश्वरदास– ‘‘शायद उस बुर्ज के भाग्य जागने वाले थे। आज वहां वह रौनक है जो कभी पृथ्वीराज चौहान के तख्त को भी नसीब न हुई। चांदनी का पर्दा पड़ा है, नंगी तलवारों का पहरा है। मेरी तो वहां जाने की हिम्मत न पड़ी और क्या अर्ज करूं।’’
राव जी– (आश्चर्य से) ‘‘क्या सचमुच नंगी तलवारों का पहरा है?’’
ईश्वरदास– ‘‘जी हां, महाराज यकीन न हो तो खुद चलकर देख लीजिए।’’
राव जी– ‘‘तब तो उनका मानना बिल्कुल नामुमकिन है।’’
ईश्वरदास– ‘‘हुजूर ठीक कहते हैं। रानी ने मुझसे पहले ही शर्त करवा ली थी। आपने बड़ा गजब किया कि ऐसे नाजुक मामले में उनके मिजाज के खिलाफ काम किया। जब एक बार ऐसी हरकत का बुरा तजुर्बा आपको हो चुका था दूसरी बार जरूर होशियार होना चाहिए था। रानी की तरफ से भी कुछ गलती हुई, उन्हें भारीली को ऐसे मौके पर भेजना मुनासिब न था। मगर जहां तक मेरा ख्याल है आपकी तरफ से उनके दिल में संदेह था और सिर्फ आपकी परीक्षा के लिए उन्होंने भारीली को भेजा था।’’
राव जी– ‘‘होनहार नहीं टलती। मैं भी बहुत पछताता हूं। पहली बार भी भारीली ही की बदौलत बिगाड़ हुआ था।’’
ईश्वरदास– ‘‘खैर, वह तो किसी तरह से दूर हुई, बला टली।’’
राव जी– ‘‘इसका भी मुझे अफसोस ही रहेगा। उस बेचारी की कोई खता न थी।’’
ईश्वरदास– (बात काटकर) ‘‘अभी तो भट्टानी जी दो-चार दिन तक महल आती नहीं दिखाई देतीं, उनके लिए क्या इंतजाम किया जाए?’’
राव जी– ‘‘मैं तो कल चला जाऊंगा। मुझे बीकानेर पर चढ़ाई करनी है। यहां का जो कुछ इन्तजाम मुनासिब था, पहले ही कर दिया है। हुमायूं बादशाह के आने की खबर थी, वह भी नहीं आया। फिर बेकार वक्त क्यों बर्बाद करूं? तुम यहां रहो और उस बुर्ज के पास कनातें खड़ी करवा के पहरे-चौकी का पूरा-पूरा बन्दोबस्त करो। जब बाई जी का मिजाज जरा धीमा हो तो समझा-बुझाकर जोधपुर ले आना। मैं किलेदार से कह दूंगा वह सब इन्तजाम कर देगा।’’
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