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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


भारीली ने उंगली होंठों पर रखकर कहा– ‘‘चुप ! अपनी जान की खैर चाहता है तो अभी मुझे यहां से निकाल ले चल नहीं तो हम-तुम दोनों मारे जाएंगे।’’

बाधा ने कहा– ‘‘मैं राव जी का नौकर हूं, बिना आज्ञा यहां से हिल नहीं सकता। पहरा पूरा कर लूं, तब जो कुछ तू कहेगी, वह करूंगा।’’

भारीली ने गिड़गिड़ाकर कहा– ‘‘इस वक्त तू मुझे अपने डेरे पर पहुंचा दे, फिर जैसा होगा, देखा जाएगा।’’

बाघा का डेरा ईश्वरदास के पास ही था। चारण जी ने ज्योंही उसे देखा, पहचान गए। झटपट राव जी के पास पहुंचे। वह घबराए हुए बैठे थे। सब नशा हिरन हो गया था। ईश्वरदास को देखते ही बहुत उदास होकर बोले– ‘‘मेरे हाथों से तो दोनों तोते उड़ गए।’’

ईश्वरदास– ‘‘उनमें से एक तो उड़ जाने के काबिल था, उसका क्या अफसोस। बाघा सिपाही से फरमाएं कि उसे इसी दम जैसलमेर पहुंचा आवे, नहीं तो दूसरा तोता भी कभी आपके हाथ न आएगा।’’

राव जी– ‘‘अगर आपकी यही मर्जी है तो बाघा से जो चाहे कह दीजिए।’’

ईश्वरदास ने उसी वक्त जाकर भारीली को एक सांडनी पर सवार कराके बाघा की हिफाजत में जैसलमेर की तरह रवाना कर दिया और वापस आकर राव जी को सूचना दी।

राव जी– ‘‘अब तो भट्टानी राजी होंगी?’

ईश्वरदास– ‘‘यह मैं नहीं कह सकता क्योंकि आप उनका मिजाज जानते हैं।’’

राव जी– ‘‘इसी डर से तो मैं उनके पास गया नहीं। आप जाकर देखिए अगर हो सकते तो मना लाइए।’’

ईश्वरदास– ‘‘अब उनका आना बहुत मुश्किल है, पर मैं जाता हूं।’’

ईश्वरदास ने जाकर देखा राजमहल सूना पड़ा है और रानी बुर्ज में जा बैठी हैं। खवासों ने सफेद चांदनी टांगकर परदा कर दिया है, लौडियां-बांदियां पहरे पर हैं, पर्दें के पास दो नौकरानियां नंगी तलवारें लिए खड़ी हैं।

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