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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है

रानी फिर रूठ गई

राव जी मारे खुशी के फूले नहीं समाते। प्रेमिका के इंतजार में घड़ियां गिन रहे हैं। राजमहल सजाया जा रहा है। नाचने-गानेवालियां जमा हो गईं। गाना हो रहा है। शराब का दौर चल रहा है। उमादे को बुलाने के लिए लौंडी पर लौंडी भेजी जा रही हैं। मगर अभी तक रानी का बनाव सिंगार पूरा नहीं हुआ। मांग में मोती भरे जा रहे हैं। चोटी गूंथी जा रही है। प्रसाधिका उसे परी बना देने की कोशिश कर रही हैं उसका जी अभी तक राव जी की तरफ झुका नहीं हैं। खुद्दारी अलग दामन खींच रही है, दिल अलग मचल रहा है। अभी तक जो पशोपेश में है कि जाऊं या न जाऊं। तबियत किसी बात पर नहीं जमती।

कैसे जाऊं, कौन-सा मुंह लेकर जाऊं, कहीं वह यह न ख्याल करने लगें कि आखिर झक मार के आयीं। नहीं, नहीं मेरा जाना मुनासिब नहीं। मगर बात हार चुकी हूं। न जाऊंगी तो झूठी ठहरूंगी। वह इसी सोच-विचार में थी कि फिर बुलावा आया। उमा, ने भारीली से कहा– ‘‘तू जाकर कह दे आते-आते आएंगी क्या ऐसी जल्दी है?’’ भारीली यह सुनकर सहम गयी। कांपते हुए बोली– ‘‘बाई जी, क्या अंधेर करती हो। मुझे क्यों भेजती हो। क्या और खवासें नहीं हैं?’’

उमादे ने कहा– ‘‘कोई हर्ज नहीं ! यह जवाब देकर जल्दी से चली आना वहां ठहरना नहीं। तुझे फिर मेरे साथ चलना होगा।’’

लाचार होकर भारीली गई, राव जी की नजर ज्योंही उस पर पड़ी वह रानी को भूल गए। उसका हाथ पकड़कर बिठा लिया। वह बहुत कहती रही कि जो मैं कहने आयी हूं, उसे सुनिए और मुझे जाने दीजिए नहीं तो रंग में भंग पड़ जाएगा। राव जी बोले, ‘‘कुछ नहीं होगा। तू झूठमूठ डरती है। भट्टानी ने तुझे मेरे दिलबहलाव के लिए ही भेजा है। जब तक वह न आएं तू यहीं रह, फिर चली जाना।’’

राव जी शराब के नशे में चूर, भारीली से चिपटे जाते हैं, अपनी धुन में न उसकी बात सुनते हैं, न उसे जाने देते हैं यहां तक कि नाचने-गानेवालियां भी महफिल का रंग देखकर वहां से खिसक जाती हैं।

थोड़ी देर के बाद रानी उमादे बनाव-सिंगार किए आयीं तो देखा राव जी भारीली को लिए बैठे हैं। उसी दम उलटे-कदम वापस हुईं। जी में कहा, अच्छा हुआ, मैं भी यही चाहती थी कि मेरी आन हाथ से न जाने पाए।

उधर भारीली ने ज्यों ही रानी को देखा, घबराकर उठी और खिड़की से नीचे कूद पड़ी। वहां बाघा नाम का संतरी पहरे पर था। जेवर की झनक सुनकर चौकन्ना हुआ, ऊपर को देखा तो भारीली नीचे गिर रही है। लपककर उसे बचा लिया और उससे पूछने लगा– ‘‘तू कौन है, परिस्तान की परी है या इन्दर के अखाड़े की हूर?’’

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