नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
सोगरा रानी लाडा ने कहा– ‘‘वह तो मारे घमण्ड के मरी जाती है। न आए की इज्जत है न गए की खातिर। ऐसी महारानी के पास कोई जाकर क्या करे।’’
चौहानी रानी इन्दर बोलीं– ‘‘महाराज, मैंने बहुत औरतें देखीं, एक से एक सुन्दर, मगर ऐसा फिरा हुआ मिजाज किसी का न देखा। न जाने उसके गोरे बदन में कौन सा भूत समा गया है।’’
रानी राजबाई ने फरमाया—‘‘गोरी-चि्ट्टी हैं तो क्या, लच्छन तो दो कौड़ी के भी नहीं हैं। बड़े घर आ गयी हैं, नहीं तो सारा घमण्ड धरा रहता।’’
झाला रानी नौरंगदेई बोली—‘‘जवानी के नशे में दीवानी हो रही है। यही नहीं जानतीं, जवानी सब पर आती है, कुछ उसी पर नहीं है। कल जवानी जाती रहेगी तो यह सब दिमाग खाक में मिल जाएगा।’’
यह सब जहरीली बातें सुन-सुनकर राव जी को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने उमादे के यहां आना-जाना कम कर दिया। कभी जाते तो उसे एक निगाह देखकर चले आते। उमादे भी सिर्फ उनके आदर के लिए खड़ी हो जाती, कुछ बातचीत न करती।
राव जी की दो और भट्टानी रानियां थीं, उनसे वह उमादे के बारे में कुछ बातचीत न करते क्योंकि वह जानते थे कि उन्हें उमादे कि शिकायत नागवार गुजरेगी, वह भी राव जी से कुछ न कहतीं पर जी में यही चाहती थीं कि अगर उनका और उमा का मिलाप हो जाता तो बहुत अच्छा होता। एक दिन मौका ढूंढ़कर उन्होंने कछवाहा रानी लाछलदेई से कहा कि उमादे नादानी में अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मार रही है, अभी कमसिन है, सौतों के दांव-पेंच को क्या जाने ! अगर यही कैफियत रही तो बेचारी की जिन्दगी अजीरन हो जाएगी। आप देखती हैं कि अब राव भी उसके यहां कम जाते हैं। मगर उसकी अकड़ अभी तक ज्यों की त्यों है। रावजी को ऐसी बेरुखी नहीं दिखलानी चाहिए। वह भरी अभी अल्हड़ है। अगर नादानी करे तो माफी के काबिल है। मगर राव जी अक्लमंद होकर क्यों रूठते हैं?
लाछलदेई बहुत नेक और समझदार औरत थीं। उन्होंने वादा किया कि मैं राव जी से इसका जिक्र करूंगी। लिहाजा एक दिन शाम के वक्त वह राव जी की खिदमत में हाजिर हुई और इधर-उधर की बातचीत करते-करते पूछा– ‘‘आपने अपनी नई रानी के पास आना-जाना क्यों कम कर दिया?’
राव जी– मैं तो बराबर आता-जाता था, मगर उसी ने रूठकर मजा किरकिरा कर दिया।’’
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