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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


रानी लाछल०– ‘‘वह रूठी क्यों, मुझे इसका भेद अब तक न खुला।’’

राव जी– ‘‘भारीली की बदौलत।’’

लाछल०– ‘‘फिर आप भारीली को क्यों इतना मुंह लगाते हैं? वह उमा के बराबर की नहीं है।’’

राव जी– ‘‘इसमें मेरी क्या खता है? उमादे ही ने उसे मेरे पास भेजा था।’’

लाछल०– ‘‘ठीक है, मगर चाहिए कि भारीली अपनी जगह रहे और उमा उमा की जगह।’’

राव जी– मैं भी तो यही चाहता हूं पर उमा नहीं मानती। उसके जी का कुछ हाल ही नहीं खुलता कि आखिर क्या मंशा है। तुम जरा पता तो लगाओ।

लाछल०– ‘‘बहुत अच्छा, कोई मौका आने दीजिए।’’

रानी लाछलदेई ने यह सब बातें उमा से कहीं। उसने उनको धन्यवाद दिया मगर इसका कुछ नतीजा न निकाला। हां, उमा को यह मालूम हो गया कि यहां भी एक औरत ऐसी है जो मेरे दुःख को समझ सकती है, अब वे अक्सर लाछल से मुलाकात करके उससे दिल बहलातीं और उसे जीजी बाई कहती उसके लड़के कुमार राम को भी बहुत प्यार करतीं।

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