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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


विमलसिंह ने गंभीर भाव से कहा–गहने बनवाता था कि नहीं? मजदूर–रुपये-पैसे तो औरत के ही हाथ में थे। गहने बनवाती, तो उसका हाथ कौन पकड़ता?

दूसरे मजदूर ने कहा–गहनों से तो लदी हुई थी। जिधर से निकल जाती थी, छम-छम की आवाज से कान भर जाते थे।

विमल–जब गहने बनवाने पर भी निठुराई की, तो यही कहना पड़ेगा कि यह जाति ही बेवफा होती है।

इतने में एक आदमी आकर विमल से बोला–चौधरी मुझे अभी एक सिपाही मिला था। वह तुम्हारा नाम, गाँव और बाप का नाम पूछ रहा था। कोई बाबू सुरेशसिंह हैं?

विमल ने सशंक होकर कहा–हाँ, है। वह मेरे गाँव के इलाकेदार और बिरादरी के भाई हैं।

आदमी–उन्होंने थाने में कोई नोटिस निकलवाया है कि जो विमलसिंह का पता लगाएगा, उसे १००० रु. का इनाम मिलेगा।

विमल–तो तुमने सिपाही को सब ठीक-ठाक बता दिया?

आदमी–चौधरी, मैं कोई गँवार हूँ क्या? समझ गया, कुछ दाल में काला है; नहीं तो कोई इतने रुपये क्यों खर्च करता। मैंने कह दिया कि उसका नाम विमलसिंह नहीं, जसोदा पांडे है। बाप का नाम सुक्खू बताया, और घर जिला झाँसी में। पूछने लगा, यहाँ कितने दिन से रहता है? मैंने कहा, कोई दस साल से। तब कुछ सोचकर चला गया। सुरेश बाबू से तुमने कोई अदावत है क्या चौधरी?

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