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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


उसने घर को अपना कोई समाचार न भेजा। अपने मन से तर्क किया, घर में कौन मेरा हितू है? गहनों के सामने मुझे कौन पूछता है? उनकी बुद्धि यह रहस्य समझने में असमर्थ थी कि आभूषणों की लालसा रहने पर भी प्रणय का पालन किया जा सकता है। और मजदूर प्रातः काल सेरों मिठाई खाकर जलपान करते, दिन-भर–दम-दम पर–गाँजे, चरस और तम्बाकू के दम लगाते, अवकाश पाते, तो बाजार की सैर करते थे। कितनों ही को शराब का शौक था। पैसों के बदले रुपये कमाते, तो पैसों की जगह रुपये खर्च कर भी डालते थे। किसी की देह पर साबित कपड़े तक नहीं थे। फिर विमल गिनती के दो-चार मजदूरों में से था, जो संयम से रहते थे, जिनके जीवन का उद्देश्य खा पीकर मर जाने के सिवा कुछ और भी था। थोड़े ही दिनों में उनके पास थोड़ी-सी संपत्ति हो गई। धन के साथ और मजदूरों पर दबाव भी बढ़ने लगा। यह प्रायः सभी जानते थे। विमल जाति का कुलीन ठाकुर है। सब ठाकुर ही कहकर उसे पुकारते। संयम और आचार सम्मान-सिद्धि के मंत्र हैं। विमल मजदूरों का नेता और महाजन हो गया।

विमल को रंगून में काम करते-करते तीन वर्ष हो चुके थे। संध्या हो गई थी। वह कई मजदूरों के साथ समुद्र के किनारे बैठा बातें कर रहा था।

एक मजदूर ने कहा–यहाँ की सभी स्त्रियाँ निठुर होती हैं। बेचारा झींगुर दस वर्ष से उस बर्मी स्त्री के साथ रहता था। कोई अपनी ब्याही जोरू से भी इतना प्रेम न करता होगा। उस पर इतना विश्वास करता था कि जो कुछ कमाता, उसके हाथ में रख देता। तीन लड़के थे। अभी कल तक दोनों साथ-साथ खाकर लेटे थे। न कोई लड़ाई न झगड़ा; न बात न चीत; रात को औरत न-जाने कब उठी और न जाने कहाँ चली गई। लड़कों को छोड़ गई। बेचारा झींगुर बैठा रो रहा है। सबसे बड़ी मुश्किल तो छोटे बच्चे की है। अभी कुल छह महीने का है। कैसे जिएगा भगवान् जाने।

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