लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

93 पाठक हैं

इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


सेना में अधिकांश लखनऊ के शोहदे और गुंडे भरे हुए थे। राजा साहब जब उन्हें हटाकर अच्छे-अच्छे जवान भरती करने की चेष्टा करते, तो सारी सेना में हाहाकार मच जाता। लोगों को शंका होती कि यह राजपूतों की सेना बनाकर कहीं राज्य ही पर तो हाथ नहीं बढ़ाना चाहते? इसलिए मुसलमान भी उनसे बदगुमान रहते थे। राजा साहब के मन में बार-बार प्रेरणा होती कि इस पद को त्यागकर चले जायँ, पर यह भय उन्हें रोकता था कि मेरे हटते ही अँग्ररेजों की बन आवेगी, और बादशाह उनके हाथों में कठपुतली बन जायँगे; रही-सही सेना के साथ अवध-राज्य का अस्तित्व भी मिट जायगा। अतएव इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी, वह अपने पद से हटने का निश्चय न कर सकते थे। सबसे कठिन समस्या यह थी कि रोशनुद्दौला भी राजा साहब से खार खाता था। उसे सदैव शंका रहती थी कि यह मराठों से मैत्री करके अवध-राज्य को मिटाना चाहते हैं। इसलिए वह भी राजा साहब के प्रत्येक कार्य में बाधा डालता रहता। उसे अब भी आशा थी कि अवध का मुसलमानी राज्य अगर जीवित रह सकता है, तो, अँग्ररेजों के संरक्षण में, अन्यथा वह अवश्य हिंदुओं की बढ़ती हुई शक्ति का ग्रास बन जायगा।

वास्तव में बख्तावरसिंह की दशा अत्यंत करुण थी। वह अपनी चतुराई से जिह्वा की भाँति दाँतों के बीच में पड़े हुए अपना काम किए जाते थे। यों तो वह स्वभाव से अक्खड़ थे, पर अपना काम निकालने के लिए मधुरता और मृदुलता, शील और विनय का आवाहन भी करते थे। इससे उनके व्यवहार में कृतिमता आ जाती, और वह शत्रुओं को उनकी ओर से और भी सशंक बना देती थी।

बादशाह ने एक अँगरेज-मुसाहब से पूछा–तुमको मालूम है, मैं तुम्हारी कितनी खातिर करता हूँ? मेरी सल्तनत में किसी की मजाल नहीं कि वह किसी अँगरेज को कड़ी निगाह से देख सके।

अँगरेज-मुसाहब ने सिर झुकाकर जवाब दिया–हम हुजूर की इस मेहरबानी को कभी नहीं भूल सकते।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book