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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


बादशाह–इमामहुसेन की कसम, अगर यहाँ कोई आदमी तुम्हें तकलीफ दे, तो मैं उसे फौरन जिंदा दीवार में चुनवा दूँ।

बादशाह की आदत थी कि वह बहुधा अँगरेजी टोपी हाथ में लेकर उसे उँगली पर नचाने लगते थे। रोज नचाते-नचाते टोपी में उँगली का घर हो गया था। इस समय जो उन्होंने टोपी उठाकर उँगली पर रखी, तो टोपी में छेद हो गया।

बादशाह का ध्यान अँग्ररेजों की तरफ था! बख्तावरसिंह बादशाह के मुँह से ऐसी बातें सुनकर कबाब हुए जाते थे। उक्त कथन में कितनी खुशामद, कितनी नीचता और अवध की प्रजा तथा राजों का कितना अपमान था! और लोग तो टोपी का छिद्र देखकर हँसने लगे, पर राजा बख्तावरसिहं के मुँह से अनायास निकल गया–हुजूर, ताज में सूराख हो गया!

राजा साहब के शत्रुओं ने तुरंत कानों पर उँगलियाँ रख लीं। बादशाह को भी ऐसा मालूम हुआ कि राजा ने मुझ पर व्यंग किया। उनके तेवर बदल गए। अँगरेजों और अन्य सभासदों ने इस प्रकार काना-फूसी शुरू की, जैसे कोई महान् अनर्थ हो गया। राजा साहब के मुँह में अनर्गल शब्द अवश्य निकले थे। इसमें कोई संदेह न था। संभव है, उन्होंने जान-बूझकर व्यंग्य न किया हो, उनके दुखी हृदय ने साधारण चेतावनी को यह तीव्र रूप दे दिया हो, पर बात बिगड़ जरूर गई थी। अब उनके शत्रु उन्हें कुचलने के ऐसे सुन्दर अवसर को हाथ से क्यों जाने देते?

राजा साहब ने सभा का यह रंग देखा, तो खून सर्द हो गया। समझ गए, आज शत्रुओं के पंजे में फँस गया, और ऐसा बुरा फँसा कि भगवान् ही निकालें, तो निकल सकता हूँ।

बादशाह ने कोतवाल से लाल आँखें करके कहा–इस नमकहराम को कैद कर लो, और इसी वक्त इसका सिर उड़ा दो। इसे मालूम हो जाता कि बादशाहों से बेअदबी करने का क्या नतीजा होता है।

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