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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


आज यह पहला ही दिन था जब मदन की दादी ने उसको कोई रहस्य की बात बताई थी। वह स्त्री और वह पुरुष पति-पत्नी नहीं हैं। लक्ष्मी पाप की सन्तान है और वे उसे छिपा कर रखे हुए थे। अब वे अमेरिका जा रहे हैं, इस कारण लड़की को साथ ले जा रहे हैं।

उस दिन मदन को लक्ष्मी के जाने का दुःख रहा। इस कारण न तो वह दूध पी सका और न ही उसने रात्रि का भोजन किया। दो ग्रास निगलकर वह आसन पर से उठ बैठा। दादी ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात है मदन?’’

‘‘उलटी करने को जी कर रहा है।’’

कई दिन के उपरान्त वह अपने साधारण जीवन पर आ पाया था। अब उसे भी यह धुन सवार हो गई थी कि वह भी अमेरिका जायेगा।

‘‘किन्तु कैसे?’’ इस प्रश्न का उत्तर वह सोचता था और अनेक प्रकार की कल्पनायें किया करता था। यद्यपि उन कल्पनाओं का चित्र सर्वथा धुंधला-सा ही बन पाता था, इस पर भी उसका वर्तमान का कार्य निश्चित-सा ही था। वह समझता था कि अमेरिका जाने के लिए उसको पढ़ाई में प्रथम आना चाहिये। अपनी श्रेणी में वह मध्यम योग्यता का विद्यार्थी समझा जाता था। परन्तु लक्ष्मी के जाने के दो सप्ताह के भीतर ही उसके अध्यापक सहसा उसको एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी समझने लगे थे।

वार्षिक परीक्षा में वह अपनी श्रेणी में प्रथम रहा। उसका परीक्षाफल देख अध्यापक एवं विद्यार्थी, सभी चकित रह गये। मदन के अंग्रेजी के अध्यापक ने पूछ लिया, ‘‘मदन! क्या घर पर कोई टीचर रखा हुआ है?’’

‘‘जी नहीं।’’

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