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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।

5

मदन स्कूल से लौटकर आया तो दादी को चटाई पर बैठे रोती देखकर विस्मय में खड़ा रह गया। दादी ने मदन को देख आंखे पोंछ डाली और पूछने लगी, ‘‘दूध पिओगे या फल खाओगे?’’

‘‘लेकिन आम्मा! तुम रो क्यों रही हो?’’

‘‘लक्ष्मी गई।’’ यह कहते-कहते उसका गला रुंध गया और वह पुनः रोने लगी।

‘‘कहां गई?’’

‘‘उसी औरत के साथ, जो उसे दे गई थी।’’

‘‘तुमने उसे जाने क्यों दिया?’’

‘‘उनकी चीज थी, वे ले गये।’’

‘‘मैं होता तो कभी न जाने देता।’’

‘‘लक्ष्मी तो जाती ही नहीं थी। वे उसको धोखे से मोटर में बैठाकर ले गये हैं।’’

‘‘तुन्हें पता है कि वे लोग उसे कहां ले गये हैं?’’

‘‘वह औरत कहती थी कि यदि किसी को न बताऊं तो बतायेगी। उसने कहा था कि वह अमरीका जा रही है।’’

‘‘परन्तु वे उसको हमारे पास छोड़ क्यों गये थे?’’

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