लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

2

इन्द्रनारायण सो नहीं रहा था। वह अपने माता-पिता की सब बातें सुन, समझ रहा था। यह सुन कि पहली रात उसकी माता को अपने पति से इतना कष्ट हुआ था कि उसकी चीखें निकल गयी थीं, वह काँप उठा। इससे उसके मस्तिष्क पर, प्रथम मिलन का एक भयानक चित्र बन गया।

विवाह के उपरान्त वह अपने नाना-नानी और मामी-मौसियों के साथ लखनऊ ही लौट आया। विष्णु भी उसके विवाह पर गया था। वहाँ पर और मार्ग में, इन मामा-भानजे को पृथक् में बात करने का अवसर ही नहीं मिला। इन्द्रनारायण कुछ इसके लिए उत्सुक भी नहीं था कि किसी से विवाह के विषय में बात करे और वह यह यत्न कर रहा था कि विष्णु से तो एकान्त में बातचीत हो ही न सके।

जब श्रेणी के लड़कों को पता चला कि इन्द्रनारायण का विवाह हो गया है तो वे दावत माँगने लगे। इन्द्रनारायण दावत देने को तैयार था, पर कुछ लड़के यह जानने के लिए उत्सुक थे कि उसकी पहली रात कैसे बीती।

इन्द्रनारायण का कोई घनिष्ठ मित्र तो था ही नहीं। इस पर भी कुछ लड़कों ने उसको कॉलेज लॉन में घेर लिया और प्रश्न पर प्रश्न करने लगे।

‘‘क्यों इन्द्र! बीवी कैसी है?’’

‘‘एक कन्या है।’’ इन्द्र ने कह दिया।

इस पर सब हँसने लगे। प्रश्नकर्ता ने विस्मय में पूछ लिया, ‘‘तो क्या तुम किसी लड़के की आशा कर रहे थे?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book