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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘कब होगा गौना?’’

‘‘अभी वह साढ़े दस वर्ष की है। मैं समझती हूँ कि चौदहवाँ पार होने पर ही उसको लाना चाहिये।’’

‘‘तो फिर तुमने विवाह की इतनी जल्दी क्यों मचाई थी?’’

‘‘हमारे धर्म में लड़की के रजस्वला होने से पूर्व विवाह हो जाना चाहिये।’’

‘‘ये गये जमाने की बातें हैं। आज इन बातों को कौन मानता है! तुम्हारा तो विवाह से दूसरे दिन ही गौना हो गया था?’’

‘‘हाँ; परन्तु मेरे माता-पिता मुझको विदा करने के लिए उत्सुक थे। नगरों में ऐसा ही होता है। और फिर स्मरण है, क्या हुआ था?’’

इस पर रामाधार की आँखें लज्जा से झुक गयीं और सौभाग्यवती ने कहा था—‘मेरी चीखों की आवाज सुनकर आपकी माँ भीतर आ गयी थीं और तब कहीं मेरा छुटकारा हुआ था। पश्चात् दो मास तक हस्पताल में चिकित्सा होती रही थी।’’

रामाधार ने बात बदल दी। उसने पूछ लिया, ‘‘अब सम्बन्धियों को विदाई क्या देना चाहती हो?’’

सौभाग्यवती ने एक लम्बी सूची कपड़ों और नकदी की सुना दी। रामाधर ने सब लिख लिया और कहा, ‘‘ठीक है, इतना कुछ तो देना ही चाहिये।’’

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