उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इस पर तो सब खिलखिलाकर हँस पड़े। इन्द्रनारायण को अपने उत्तर में कुछ भी हँसने की बात प्रतीत नहीं हुई थी और वह लड़के के दूसरे प्रश्न को तो सर्वथा अनर्गल मानता था। वह गम्भीर मुद्रा बनाये खड़ा रहा। जब सब खूब हँस चुके तो उसने उनका समाधान करने के लिए कह दिया, ‘‘कन्या से मेरा मतलब छोटी आयु की लड़की है। कन्या का विकल्प कुमारी होता है, लड़का नहीं।’’
‘‘ओह! इस पर अन्य लड़का बोल उठा, ‘‘तो तुम्हारा अभी विवाह नहीं हुआ?’’
‘‘विवाह तो हो गया है, पर गौना नहीं हुआ।’’
इस पर सब निराश हो चुप कर गए। सबके मुखों पर सहानुभूति की मुद्रा बन गयी। उनका मुख देख अब इन्द्रनारायण हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘‘गौना भी हो जायेगा, मुझको विश्वास है। आप सबके लिए दावत का प्रबन्ध हो ही जायेगा।’’
उसी सायंकाल कॉलेज से लौटते हुए विष्णु ने उसकी नाक में दम कर दिया। वह पूछने लगा, ‘‘तुमने अपनी पत्नी को देखा भी है या नहीं?’’
‘‘देखा है।’’
‘‘कैसी थी?’’
‘‘लाल कपड़े में बँधी हुई गठरी-सी।’’
विष्णु हँस पड़ा। हँसते हुए उसने कहा, ‘‘अरे बुद्धू! मैं उसके कपड़ों की बात नहीं कर रहा। मैं तो पूछ रहा हूँ उसका रंग, उसके नयन, उसके अधर, उसका मस्तक, उसकी चिबुक, ग्रीवा, छाती इत्यादि। मेरा मतलब है कि वह सुन्दर है क्या?’’
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