उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
परिणाम यह हुआ कि जहाँ इन्द्रनारायण छात्रवृत्ति पा गया, वहाँ विष्णु दो विषयों में अनुत्तीर्ण हो गया। परिणाम घोषित होने के दिन शिवदत्त ने अपने कार्यालय में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को टेलीफोन कर दोनों लड़कों का परिणाम जान लिया। घर जाकर उसने एक तार दुरैया भेजने के लिये विष्णु को दे दिया।
विष्णु को अपने अनुतीर्ण होने से बहुत ही दुःख हुआ था। इन्द्रनारायण के उत्तीर्ण होने से उसको ईर्ष्या हो रही थी। अतः उसने वह तार फाड़ दिया। दाम जेब में डाल लिये। सायंकाल वह घर पहुँचा तो पिता के पूछने पर उसने झूठ बोल दिया कि वह तार दे आया है। यही हाल उसने ‘लीडर’ समाचार-पत्र का किया जबकि उसके पिता ने वह उसे डाक में डालने को दिया।
परीक्षा-फल के पन्द्रह-सोलह दिन के पश्चात् इन्द्र आया और कहने लगा कि उसको न तो तार ही मिला है, न कोई पत्र। जब विष्णु से उस विषय में पूछा गया तो उसने स्पष्ट कह दिया, ‘‘मेरी उस तार और पत्र भेजने में रुचि नहीं थी। मैं किसी का नौकर नहीं, परीक्षा-फल पहुँचाता फिरूँ।’’
इस पर शिवदत्त केवल हँस दिया, परन्तु उसकी पत्नी पद्मा ने पुत्र को डाँटा। उसने कहा–‘‘विष्णु! वह पत्र किसने दिया था तुमको?’’
‘‘पिताजी ने।’’
‘‘तो तुमने अपने पिता का कहना मानना छोड़ दिया है, क्यों?’’
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