उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
विष्णु जन्मजात परिस्थितियों के कारण आरम्भ से ही बहुत चंचल स्वभाव का लड़का था। वह दिन-भर खेलता-फिरता था। माता-पिता से पृथक् रहने का उसका स्वभाव पड़ गया था। जब स्कूल में भरती हुआ तो वह खेल-कूद और शरारतों में अधिक रुचि रखता था। परीक्षा के कुछ दिन पूर्व किताबें निकालकर पढ़ लेता था और परीक्षा पास कर लेता था।
जब वह छठी श्रेणी में गया तो इन्द्रनारायण गाँव से शहर आ गया और दोनों की शिक्षा साथ-साथ चलने लगी। शिवदत्त का विचार था कि दोनों बालक इकट्ठे रहने से रुचिपूर्वक पढ़ाई कर सकेंगे। स्कूल की पढ़ाई तक तो यह योजना सफल हुई। इन्द्रनारायण तो मैट्रिक में छात्रवृत्ति पा गया और विष्णु भी फर्स्ट डिवीजन में उत्तीर्ण हो गया। दोनों को ‘इण्टरमीडिएट विद साइंस’ मेडिकल ग्रुप में भरती करवा दिया गया।
कॉलेज में पहुँचते ही विष्णु की चंचल प्रकृति को इधर-उधर भागने का अवसर मिलने लगा। उधर घर पर भी शिवदत्त पाण्डे के क्लब जीवन की परछाईं पड़ने लगी। सिगरेट, सिगार तथा मद्य में प्रवेश पा ही लिया था। इसका प्रभाव जहाँ विष्णु की चंचलता को और भी चंचल करने वाला सिद्ध हुआ, वहाँ इन्द्रनारायण की प्रकृति को संयत करने वाला सिद्ध हुआ। उसके बचपन के संस्कार ही इसमें कारण थे।
कॉलेज में, श्रेणी की तीन लड़कियों की उपस्थिति भी विष्णु की चंचल प्रकृति को और भी चलायमान करने में सहायक हुई। प्रायः सब लड़के उनके नख-शिख की व्याख्या करते थे। पश्चात् उनके विषय में कुत्सित कल्पना कर अपने मन को पतित करते रहते थे। यदि ऐना-इरीन तथा स्मिथ के घर के संस्कार भी वही होते है, जो रजनी के घर के थे, तो कदाचित् कुछ भी बिगाड़ न होता; परन्तु ऐंग्लो-इण्डियन समुदाय की दो लड़कियों के कारण कुछ लड़कों की कल्पनाओं को क्रियात्मक क्षेत्र में अवतीर्ण होने का अवसर मिलने लगा। इस दौड़ में विष्णु सबसे आगे था।
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