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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
पत्नी के आग्रह पर और आर्थिक स्थिति दुर्बल होने के कारण शिवदत्त मान गया। विवाह हो गया और जो शिवदत्त ने दिया, रामाधार के माता-पिता ने सिर-आँखों पर ले लिया।
बहू को घर पर बहुत लाड़-प्यार से रखा गया। प्रथम मिलन की दुर्घटना पर रामाधार की माँ को बहुत शोक हुआ। सौभाग्यवती को कानपुर के सरकारी हस्पताल में भरती करवा दिया गया और दो मास की चिकित्सा के पश्चात् वह ठीक हुई।
सौभाग्यवती के विवाह के पश्चात् शिवदत्त की आर्थिक स्थिति अवस्था सुधरने लगी। कार्यालय में उसकी उन्नति होने लगी। कुछ ऐसे कामों पर नियुक्ति हुई कि वेतन के अतिरिक्त आय भी होने लगी।
अब शिवदत्त ऑफिसर्स क्लब का सदस्य हो गया। वहाँ अफसरों के मेल-जोल से उसकी उन्नति की गति और भी तीव्र हो गयी। इसके साथ ही उसको सिगरेट, मद्य और जुए की लत भी लग गयी। सौभाग्यवती के विवाह के पश्चात्, मद्य के नशे में विष्णु का बीजारोपण हुआ और दुर्बल, पतला परन्तु चंचल-चपल शिशु का जन्म हो गया।
विष्णु के जन्म के समय उसकी माँ को भारी कष्ट हुआ और वह प्रसूत ज्वर से रुग्ण रहने लगी। शिवदत्त को सिविल सर्जन की सेवाएँ उपलब्ध थीं, अतः उसकी चिकित्सा की गई। छः मास की चिकित्सा के पश्चात् प्रसूता को तपेदिक होने की घोषणा कर दी गयी। इस समय शिवदत्त का नशा टूटा और वह डॉक्टरी चिकित्सा छोड़ वैद्यों के पीछे भाग-दौड़ करने लगा। गणेशगंज में ही पण्डित रामनारायण मिश्र आयुर्वेदाचार्य चिकित्सा-कार्य करते थे। उनको रोगिणी दिखायी गयी और दो मास में ही रोगिणी ज्वर से मुक्त हो पथ्य लेने लगी। तीसरे मास वह बालक विष्णु को लेकर अल्मोड़ा स्वास्थ्य-सुधार के लिये चली गयी।
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