उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘वह बुर्के वाली औरत चुप कर गयी और कुछ सोच में पड़ गयी। अनवर को यह समझ में आया कि वह औरत अपनी ही लड़की के विषय में प्रस्ताव सुनने की आशा नहीं करती होगी, इसी कारण चुप कर गयी है। परन्तु उसके विस्मय का ठिकाना नहीं रहा। जब उस औरत ने कह दिया, ‘‘तो नवाब साहब की लड़की पर ही आपकी आँखें पड़ी हैं?’’
‘‘जी। यह गुस्ताखी इन आँखों ने की है। इस पर भी ये बेकसूर हैं। यह तो एक इत्तफाक था कि वह नजर में आ गयी, वरना ये भला कैसे उधर नजर भर सकती थीं!’’
‘‘नवाब साहब आयेंगे तो बात कर लीजियेगा। इस पर भी एक बात मैं आपको बता देना चाहती हूँ कि वह लड़की, जो कल बेहोश हो गयी थी, नवाब साहब की उस बेगम से हैं, जो गाँव में रूठकर पड़ी है। एक और बात भी है कि वह हजरत की लड़कियों में सबसे छोटी है। यह मसला कैसे हल होगा, सोचने की बात है। इस पर भी कोशिश कीजिये। कोई सूरत निकल सके तो अच्छा ही है।’’ उस औरत ने आगे कह दिया।
इस वक्त नवाब साहब इक्के में वहाँ आ पहुँचे। वह औरत खड़ी हो गयी और बोली, ‘‘लीजिये, नवाब साहब आ गये हैं और मैं चली। मेरी दुआ आपके साथ है।’’
पूर्व इसके कि नवाब साहब ड्राइंग-रूम में आयें, वह औरत चल पड़ी। अनवर उसको जाते देख रहा था। वह औरत भीतर के दरवाजे के पास पहुँच घूमी और एक क्षण के लिए बुर्का उठा, अनवर को सलाम कर, मुस्कराकर अन्दर चली गयी।
यह वही लड़की थी, जिसने पिछले दिन अनवर को मोटर से उतर कोठी की ओर जाते हुए दर्शन दिये थे और मुस्कराकर कहा था, ‘शुक्रिया।’
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