उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
अनवर को बेगम की जगह उसकी लड़की से बातें करने में परेशानी अनुभव होने लगी। वह अभी भीतर की ओर देख रहा था कि नवाब साहब आ गये और आते ही बोले, ‘‘ ओह, अनवर! सुनाओ भाई, कैसे आये?’’
अनवर अभी परेशान-सा अन्तःपुर की ओर देख रहा था। नवाब साहब ने यह देख पूछ लिया, ‘‘उधर क्या देख रहे हो, बरखुरदार?’’
‘‘अभी बेगम साहिबा यहाँ थीं और आपकी गैरहाजिरी में कल की थोड़ी-सी खिदमत के लिये शुक्रिया अदा करने आ गयी थीं।’’
‘‘बेगम साहिबा? वे तो आज सुबह गाँव चली गयी थीं।’’
‘‘इस पर भी कोई तो थी, जो अपने को बेगम साहिबा जाहिर कर रही थी।’’
‘‘जरूर कोई नौकरानी आपका मजाक उड़ाने आ गयी होगी।’’
‘‘हाँ। कुछ ऐसा ही समझ आने लगा है। खैर, छोड़िये। यह औरतों की फितरत में है। वे मर्दों का मजाक उड़ाया ही करती हैं। मैं तो उनको असली बेगम समझकर एक दरख्वास्त कर बैठा था और वह कह गयी हैं कि मेरी दरख्वास्त मंजूर होने की उम्मीद कायम है। मुझको खुद आपसे अर्ज करनी चाहिये।’’
‘‘खूब! क्या अर्जी है तुम्हारी, जिसकी सिफारिश नकली बेगम मेरे पास करने वाली है?’’
‘‘मैं दूसरी शादी करना चाहता हूँ।’’
नवाब साहब दिलचस्पी से सुनने लगे। अनवर ने आगे कह दिया, ‘‘खुदा के फजल से आपके घर लड़कियाँ हैं और उनमें से एक के लिये अर्जी की थी।’’
‘‘ओह! कल लड़की को देख यह खयाल कर बैठे हो?’’
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