उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
अनवर अपने पिता की इस तारीफ को सुन शर्म से लाल हो गया। इस पर भी एक औरत के सामने अपनी नाराजगी जाहिर करना तहजीब के खिलाफ समझ वह सिर्फ मुस्करा दिया और चुप रहा।
इस पर वह औरत कहने लगी, ‘‘मेरा मतलब है कि यह तो है नहीं कि लड़की दूसरी जगह जाने से भूखी मरने लगेगी या जेवर-कपड़े नहीं पा सकेगी। ऐसी हालत में उसका वालिद मान जायेगा। बताइये, नवाब साहब आपकी सिफारिश कर देंगे। कौन है वह लड़की?’’
‘‘कुछ डर लगता है कि दूसरी शादी में नवाब साहब मदद देना मंजूर करेंगे या नहीं?’’
‘‘उन्होंने खुद तीन शादियाँ की हुई हैं।’’
‘‘अच्छा! मुझको मालूम नहीं था। तीनों बेगमात यहीं पर हैं?’’
‘‘नहीं; हम दो हैं। तीसरी गाँव में हैं। वह लड़ती-झगड़ती रहती है। इस वजह से वह हमारे साथ चलना-फिरना पसन्द नहीं करती।’’
‘‘ओह! तब तो कुछ उम्मीद की जा सकती है।’’
‘‘हाँ, क्या वह लड़की लखनऊ में ही है? या वह अपनी जमींदारी पर है?’’
‘‘जी नहीं, यहीं लखनऊ में है। कल,’’ अब अनवर ने साहस कर कहना शुरू कर दिया–‘‘कल मरसिया सुनते-सुनते वह बेहोश हो गयी थी और उस वक्त उसका बुर्का कुछ सरक गया था। मुझको वह चौदहवीं का चाँद नजर आयी। मैं रात-भर उसके ख्वाब लेता रहा हूँ।’’
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