उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
एकाएक जोश में लोग ‘हुसैन! हुसैन!!’ कहकर रोने और छातियाँ पीटने लगे। अनवर के आगे बैठी लड़कियाँ भी धड़ाधड़ छातियाँ पीटने लगीं। लड़कियों की माँ सबसे छोटी लड़की की पीठ पर हाथ फेरती हुई उसको कहने लगी, ‘‘बस कर, बस कर नादिरा! बस कर।’’
इस पर वह लड़की अपनी माँ की गोदी में सिर रख सिसकियाँ भरने लगी। दूसरे लोग अभी भी रो रहे थे। इस समय नादिरा अचेत हो गयी और वह माँ की गोद में सिर रखे अपना शरीर ढोला छोड़ बैठी। माँ की चीख निकल गयी। इससे सब पास के लोग इस तरफ देखने लगे थे। नादिरा के मुख से बुर्का हट गया था। काले बुर्के में चाँद की भाँकि सफेद मुख अनवर की दृष्टि में भी आया और वह उसके मोतियों की कली के समान सुन्दर मुख को देख स्तब्ध रह गया।
नवाब करामत हुसैन ने लड़की को गोद में उठाया और बाहर ले गये। नवाब की शेष तीनों लड़कियाँ और बीवी उठीं तो अनवर भी उठकर उनके साथ-साथ बाहर चला आया।
बेहोश लड़की को हाथ में उठाये नवाब करामत हुसैन कर्बला से बाहर निकले और लड़की को किसी सवारी में घर ले जाने के विषय में विचार करने लगे। अनवर हुसैन ने उनकी परेशानी को देखा तो पूछने लगा, ‘‘सवारी देख रहे हैं क्या?’’
‘‘हाँ’’
‘‘तो चलिये, मेरी मोटर हाजिर है। मैं खुद ही चलाता हूँ।’’
‘‘आप...। नवाब अब्दुल गुफार खाँ साहब के साहबजादे हैं न?’’
‘‘जी। आपने ठीक पहचान लिया है।’’
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