उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
ऐना भी यह विचार कर कि उसने नवाब के घर को उत्तराधिकारी दिया है, कुछ अधिक उच्छृंखल हो गयी थी। दावक के समय जब वह अपने श्वशुर और चारों सासों के सम्मुख अपने मित्रों और संबंधी-जनों से खुलकर मिली तो अनवर के मन में एक टीस-सी उठी।
उसके मन में दूर भविष्य की परिस्थिति का चित्र बनने लगा। वह विचारने लगा कि यदि उसका व्यवहार इसी प्रकार का लज्जाजनक रहा तो उसे छोड़ देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं रहेगा।
तब क्या होगा? अब वह विचार करता था कि यदि इस्लाम के ढंग से विवाह किया तो तलाक की आवश्यकता नहीं थी। वह दूसरी, तीसरी और चौथी शादी कर सकता था। इस समय भी उसके वालिद शरीफ की चार बीवियाँ थीं। वह मन में विचार करता था कि स्पेशल मैरेज एक्ट के अनुसार ऐना से विवाह करने पर उसने अपनी आजादी को सीमित कर लिया है।
इन्हीं दिनों उसके ऐसे विचारों को प्रोत्साहन देने वाली एक घटना घटी। अवध के एक जमींदार नवाब साहब करामत हुसैन की चार लड़कियाँ मरसिया सुनने कर्बला में गयी हुई थीं। चारों बुर्का में थीं। कर्बला में सहस्रत्रों अन्य शिक्षा मुसलमान उपस्थित थे। वे सब मरसिया सुन-सुन रो रहे थे। कभी-कभी जब जज्बात उभरकर काष्ठा की स्थिति में पहुँच जाते थे तो श्रोतागण ‘हा हुसैन! हा हुसैन!!’ करते हुए अपनी छातियाँ पीटने लगते थे।
करामत हुसैन की बीवी और लड़कियाँ सबसे आगे बैठी हुई थीं और हुसैन उसकी कुरबानी की कहानी सुन-सुनकर आँसू बहा रही थीं। नवाब साहब उसके पीछे बैठे थे। घटनावश नवाब साहब के पास अनवर आकर बैठ गया। बीच-बीच में नवाब साहब रूमाल निकालकर अपने आँसू पोंछने का बहाना कर रहे थे।
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