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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


कमलाकर इन्द्र और शारदा से मिलने लखनऊ चला गया। वहाँ शारदा को सर्वथा प्रसन्न और खुश देखकर उसको सन्तोष हुआ।

कमलाकर ने जब इन्द्र से विष्णु के विषय में पूछा तो इन्द्र ने कहा, ‘‘यह वहीं लड़का है, जिसको आपने म्लेच्छ समझकर अपने गाँव से खदेड़ दिया था।’’

‘‘ओह! अब समझा। उसने सत्य शारदा को देखा है। यद्यपि मैं उसके व्यवहार और खान-पान को पसन्द नहीं करता था, इस पर भी उसने मुझसे अपनी जान-पहचान कर ली थी। एक दिन वह सागर में ‘बंशी डाले मछलियाँ पकड़ रहा था कि मैं और शारदा घूमते हुए वहाँ पहुँच गये। मैं शारदा को समझा रहा था कि कैसे मछली पकड़ी जाती है। तब वह मेरी और शारदा की ओर देख रहा था। वह आया और शारदा को अपनी टोकरी, जिसमें तीन-चार मछलियाँ जल के अभाव में तड़प रही थीं, दिखाकर बोला, ‘‘मछलियाँ और स्त्रियों का यही अन्त होता है। वे भी ससुराल में जाकर ऐसे ही छटपटाती रहती हैं और अन्त में यमलोक को सिधार जाती है।’’

‘‘मैंने शारदा के भयभीत मुख को देखकर कह दिया, ‘‘इन ईसाइयों के यहाँ स्त्रियों का अन्त यही होता होगा। परन्तु शारदा! तुम अपनी भाभी से पूछना कि वह इन मछलियों की तरह तड़पती रही हैं क्या?’

‘‘बात इससे अधिक नहीं हुई थी। उस दिन से मैंने उससे मिलना पसन्द नहीं किया। उसका ऐसी भयंकर बात एक अपरिचित लड़की को कहना मुझे भला प्रतीत नहीं हुआ।’’

इसके पश्चात् तो इन्द्रनारायण को शारदा पर संदेह करे लिये कोई कारण भी नहीं रहा। शारदा और इन्द्र रायसाहब के परिवार के साथ नैनीताल चले गये। वहाँ एक मास के लगभग इन्द्र शारदा को गाँव में छोड़ अपनी पढ़ाई के लिए लखनऊ चला आया।

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