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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘उसके चरित्र के विषय में जाँच की है?’’

‘‘की है। वह बात सर्वथा निराधार थी।’’

‘‘परन्तु इन्द्र का मामा ही तो कह रहा था न?’’’

‘‘उसको भ्रम हो गया प्रतीत होता है। वह किसी अन्य की बात रही होगी।’’

इसके साथ ही जब गाँव की स्त्रियों ने इन्द्र की माँ और उनके घर के अन्य प्राणियों को बहू का आदर करते हुए देखा तो मन में संशय रखते हुए भी कुछ कहने का साहस नहीं कर सकीं। धीरे-धीरे गाँव में स्थिति सामान्य हो रही थी।

जब सिन्हा साहब की पत्नी उसको लखनऊ ले जाने के लिये आई और इन्द्र उनके घर गया तो रहा-सहा संशय भी निवारण हो गया।

शारदा और इन्द्र लखनऊ गये हुए थे कि शारदा का भाई कमलाकर बहन से मिलने के लिये आया। उसके आने से गाँव में पुनः चर्चा चल पड़ी। इस बार चर्चा निश्चयात्मक नहीं, प्रत्युत् संदेहात्मक थी। गाँव वालों को अपनी सूचना पर संदेह था।

रामाधार ने कमलाकर को पूर्ण कथा का विवरण बताकर कहा, ‘‘हमको विष्णु की बात पर विश्वास नहीं हुआ, परन्तु विष्णु की बात गाँव भर में फैल गई और कुछ दिन तक भारी चर्चा रही।’’

कमलाकर इस वृत्तान्त को सुनकर चिन्ता अनुभव करने लगा। उसने कहा, ‘‘मौसाजी! यह बात सर्वथा निराधार है। मैं नहीं कह सकता कि आपके साले विष्णु का क्या उद्देश्य था, इस प्रकार के झूठ बोलने में। इस पर भी इस बात में लेश-मात्र भी सच्चाई नहीं है।’’

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