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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस वृत्तान्त से रमेशचन्द्र रामाधार के परिस्थिति के विश्लेषण पर बहुत ही प्रसन्न हुआ था। रजनी ने बताया कि रामाधार कहता था कि शारदा दुश्चरित्र प्रतीत नहीं होती। परन्तु यदि उसको वैसा मान भी लिया जाये तब भी वह इन्द्र की बहू के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकती। वह भली-बुरी, स्वीकृत अथवा त्यक्ता जो कुछ भी हो, रहेगी इन्द्र की पत्नी ही। इस कारण वह इस घर में रहने का पूर्ण अधिकार रखती है। रामाधार का यह भी कहना था कि इन्द्र इससे सम्पर्क रखे अथवा न रखे यह एक सर्वथा पृथक् बात है। यह शारदा का काम है कि वह अपने पति को अपने नेक और सच्चरित्र होने का विश्वास दिलाये।

रमेशचन्द्र ने पूछा, ‘‘तो पति-पत्नी में सुलह हुई है अथवा नहीं?’’

‘‘मैंने पूछा नहीं। दोनों मकान की छत पर अकेले सोये थे। इस पर भी मेरा विचार है कि दोनों परस्पर मन का भेद अभी मिटा नहीं पाये।

‘‘परन्तु शारदा अब घर में डटकर रह रही है। उसके सास-ससुर उससे उचित व्यवहार कर रहे हैं।’’

‘‘तो मेरा विचार है,’’ रमेशचन्द्र ने कह दिया, ‘‘कि रजनी की माँ जाकर इन्द्र और उसकी बहू को यहाँ ले आये।’’

रजनी की माँ ने कह दिया, ‘‘एक निमन्त्रण-पत्र भेज दिया जाये और पता किया जाये कि वे कब आ सकते हैं। तब मैं जाकर उनको यहाँ ले आऊँगी।’’

‘‘रजनी के जाने के तीसरे दिन की बात है। तब तक शारदा को दुरैया में आये हुए छः दिन हो चुके थे। इन्द्र और शारदा दोनों दिन के समय अपने कमरे में बैठे थे। शारदा राधा से माँगकर रामचरितमानस पढ़ रही थी। वह धीरे-धीरे गाकर चौपाइयाँ पढ़ने लगी थी। इन्द्र का ध्यान भंग हो गया। वह भी अंग्रेजी की एक पुस्तक पढ़ रहा था। जब शारदा ने स्वरसहित पढ़ा–

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