लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘सन्तानोत्पत्ति तो होगी। जहाँ स्त्री-पुरुष इकट्ठे रहेंगे, विवाहित हों अथवा अविवाहित, सम्बन्ध बन सकता है और सन्तानोत्पत्ति भी हो सकती है, परन्तु सन्तान का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध करना गृहस्थी का धर्म होता है।’’

‘‘चाहे वह सन्तान विवाहित पति-पत्नी से हो, चाहे बिना विवाह के?’’

‘‘हाँ; दोनों का पालन होना चाहिये। पालन करना गृहस्थी का धर्म है।’’

‘‘परन्तु प्रश्न यह है कि कौन करे?’’

‘‘वैसे तो सन्तान के माता-पिता उसका पालन-पोषण करें। जहाँ यह न हों सके वहाँ कोई भी गृहस्थी, जिसको निराश्रय सन्तान का ज्ञान हो, वह करे।’’

‘‘पर बाबा! अब मैं क्या करूँ?’’

‘‘तुमने उसका पाणिग्रहण किया है। वह अच्छी है या बुरी है, तुम्हारी पत्नी ही रहेगी। वेद-मन्त्रों से तुम्हारा और उसका सम्बन्ध बन गया है। वह तो टूट नहीं सकता। यदि वह चरित्रवान है तो इन्द्र की बहू सुशील और भली स्त्री कहलायेगी। और यदि वह चरित्रहीन है तो इन्द्र की बहू कुचेष्टा वाली कहायेगी। दोनों ही अवस्थाओं में रहेगी इन्द्र की बहू ही।’’

‘‘बाबा! मान लें, वह किसी अन्य के पास रहने के लिये चली जाती है, तब भी वह मेरी पत्नी रहेगी क्या?’’

‘‘तो और किसकी होगी? हम हिन्दुओं में विवाह एक बार ही होता है। स्त्री दुश्चरित्रा होने पर पति को छोड़ किसी अन्य के पास जा सकती है, उस पर भी वह कहायेगी अपने विवाहित की पत्नी ही। उसका दूसरा विवाह कहीं भूल से हो भी जाये तो वह मान्य नहीं हो सकता।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book