उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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दिन निकलने तक दोनों उसी कमरे में बैठी रहीं। इस घटना के पश्चात् नींद आना कठिन था। कदाचित वे सोना भी नहीं चाहती थीं। इस पर भी रजनी के आश्वासन के पश्चात् वे परस्पर कुछ कह नहीं सकीं। कहने को कुछ था भी नहीं। अपने-अपने मन में संकल्प की आवश्यकता थी और वह बन रहा था। शारदा को संकेत मिल गया था कि उसके पति ने उसका पाणिग्रहण किया है और यहाँ रहना उसका अधिकार हो गया है। वह मन में यह योजना बना रही थी कि वह कैसे वहाँ रह सकेगी। रजनी मन में विचार कर रही थी कि उसने इस बालिका को वचन दिया है कि वह उसका पक्ष लेगी। वह इन्हीं विचारों में डूबी हुई थी कि क्या-क्या परिस्थितियाँ उत्पन्न उत्पन्न हो सकती हैं और उन परिस्थितियों में वह क्या कर सकेगी?
अभी दिन का प्रकाश होने ही लगा था कि इन्द्र उठकर नीचे आया। जब वह अपने कमरे में पहुँचा तो एक पलंग पर अपनी और दूसरे पर रजनी को अपने विचारों में मग्न देख द्वार पर ही खड़ा हो गया। रजनी ने उसकी ओर देखा तो वह वापस हो गया। रजनी ने बुला लिया, ‘इन्द्र भैया!’’
‘‘हाँ बहन!’’
‘‘यह तुमने क्या किया है?’’
‘‘वही, जो मुझको करना चाहिये था।’’
‘‘क्या करना चाहिये था? पति-पत्नी में अविश्वास? यह किस धर्म-शास्त्र में लिखा है?’’
‘‘अभी हम पति-पत्नी नहीं बने। वर्तमान अविश्वास की भावना में पति-पत्नी बनना उचित भी प्रतीत नहीं हुआ।’’
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