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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘उन्होंने तो यही कहा है कि हमको इस बात का विश्वास नहीं। इस पर भी हम जाँच-पड़ताल करेंगे।’’

‘‘यह बात तो काका ने गलत कही है।’’

‘‘तो क्या कहते?’’

‘‘यही कहना चाहिये था कि यह बात हमारे किसी शत्रु ने चलाई है।’’ यह बात सर्वथा असत्य है।’’

‘‘इन्द्र के पिता सत्य की इतनी महिमा मानते हैं कि वे जिसको जैसा समझते हैं, वैसा ही कहते हैं।’’

रजनी चुप कर रही। इस पर भी मन-ही-मन उसको किसी बहुत ही भयंकर बात की आशंका होने लगी थी। इन्द्र के मुख के रंग से वह समझ रही थी कि चौधरी ने बात उसके सामने ही कही होगी। उस बात का प्रभाव ही उसके मुख पर था। वह मन में शारदा के लिये भगवान् से प्रार्थना करती हुई अपनी खाट पर लेट गयी।

धीर-धीरे सब सो गये। इस पर भी रजनी के मस्तिष्क में शारदा के लिये सहानुभूति व्यापक रूप में थी। ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता गया और मकान की छत पर किसी प्रकार की हलचल सुनाई नहीं दी, तो रजनी सुख की साँस लेने लगी। लगभग रात के दो बजे उसको झपकी आ गयी। कितनी देर तक सोती रही, वह नहीं जान सकी। उसकी नींद खुली तो उसकी खाट पर पाँव की तरफ कोई बैठा हुआ लेट गया था। वह चौंककर उठी। चाँदनी में उसने देखा कि बहू है। रजनी को उठकर बैठते देख वह भी उठकर बैठ गयी। रजनी ने पूछा, ‘‘क्या है?’’

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