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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मेरी कठिनाई यह है कि कॉलेज का खर्चा पिताजी दे नहीं सकेंगे और नानाजी पर और अधिक बोझ डालना मैं उचित नहीं समझता।’’

‘‘तो फिर आपने साइंस क्यों ली थी? आप तो इतिहास इत्यादि सुगम विषय लेकर और भी अधिक अंक ले सकते थे।’’

‘‘नानाजी ने कहा था कि बिना साइंस पढ़े अक्ल ही नहीं आती। उनका कहना था कि संस्कृत आदि पढ़ने से आदमी बुद्धू रहता है।’’

रजनी हँस पड़ी। इस पर इन्द्रनारायण ने कह दिया, ‘‘आज परीक्षा का अन्तिम दिन है। आज के पश्चात् तो आपके दर्शन तभी सम्भव हैं, जब हम दोनों एक ही कॉलेज में गए।’’

‘‘और यदि भिन्न-भिन्न कॉलेजों में गये तो?’’

‘‘तब...तब भेंट बहुत ही कठिन है।’’

‘‘मैं आपको स्मरण रखूँगी। पूर्ण श्रेणी में एक आप ही हैं, जिनके विषय में मेरे कुछ अच्छे विचार रहे हैं। ये इरीन और स्मिथ फर्स्ट क्लास ‘फर्ल्ट’ हैं और इन्होंने सब लड़कों को मूर्ख बना रखा था। मैं यह देखकर चकित थी कि आपने उनसे कभी भी बात नहीं की, न ही करने का यत्न किया, अर्थात् आप मूर्ख नहीं बने।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि वे मेरे कपड़ों के कारण मुझसे घृणा करती हैं।’’

इस पर रजनी हँस पड़ी। हँसकर उसने कहा, ‘‘नहीं, यह बात नहीं। वे यह समझती हैं कि आप बहुत सुन्दर युवक हैं। केवल अभिमानी हैं। आपने कभी उसे पृथक में मिलने का यत्न नहीं किया।’’

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