उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
9 पाठकों को प्रिय 410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘बात यह है कि माँ अपने कते सूत का कपड़ा बुनवाकर भेज देती हैं। और मैं उनके प्रेम से बनाये कपड़े को व्यर्थ गँवा नहीं सकता। जब तक मैं यह कपड़े पहने रहता हूँ, मेरा रोम-रोम माँ के स्नेह से सिक्त रहता है।’’
‘‘वैसे तो ये कपड़े अच्छे ही प्रतीत होते हैं।’’ केवल नगर के लोग इसको काँग्रेसियों का पहरावा मानते हैं और काँग्रेस विद्यार्थी-वर्ग में अब पसन्द नहीं की जाती।’’
‘‘मेरे मन में तो काँग्रेस का विचार नहीं है। मैं तो माँ की मेहनत का आदर करता हूँ।’’
‘‘यह विष्णु आपका भाई है?’’
‘‘वह मेरा मामा है।’’
‘‘वह अच्छा आदमी नहीं है।’’
‘‘क्या बुराई है उसमें?’’
रजनी ने उत्तर नहीं दिया। उसको आगे बताने में लज्जा अनुभव हुई। साथ ही उसका मुख लज्जा के कारण लाला हो गया था। इन्द्र ने देखा तो कुछ बहुत बुरी बात का अनुमान लगा, ‘‘बात बदलकर कहने लगा, ‘‘आप आगे मेडिकल कॉलेज में भरती होंगी क्या?’’
‘‘विचार तो है, परन्तु विचार की पूर्ति तो फर्स्ट डिवीज़न आने पर ही हो सकती है। कम अंक आने पर तो प्रवेश ही नहीं मिलेगा।’’
‘‘आपके पर्चे कैसे हुए हैं?’’
‘‘मैं आशा तो करती हूँ कि अच्छे अंक आयेंगे।’’
दोनों पैदल ही चले जा रहे थे। अब रजनी ने पूछ लिया, ‘‘आप तो अवश्य ही मेडिकल कॉलेज में प्रविष्ट हो सकेंगे।’’
|