उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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इस दावत का परिणाम यह हुआ कि रजनी सिन्हा से इन्द्रनारायण की दुआ-सलाम होने लगी। यह पहले रजनी ने ही आरम्भ की। जब वह कहीं सामने आती तो हाथ जोड़कर कह देती, ‘‘इन्द्रजी, नमस्ते।’’ इन्द्र किसी लड़की से बात करने में लज्जा अनुभव करते हुए भी कहने पर विविश हो जाता, ‘‘नमस्ते, रजनी बहन!’’
इस प्रकार दिन व्यतीत हो रहे थे। इण्टर की परीक्षा हुई और प्रायोगिक परीक्षा के दिन रजनी और इन्द्र को परस्पर खुलकर बात करने का अवसर मिल गया। परीक्षा देकर दोनों इकट्ठे निकले और यूनिवर्सिटी से नगर की ओर चले तो रजनी ने पूछ लिया, ‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’
‘‘गणेशगंज में।’’
‘‘तो आप लखनऊ के ही रहने वाले हैं?’’
‘‘जी नहीं। यहाँ मेरे नानाजी का घर है। मैं जिला उन्नाव के दुरैया गाँव का रहने वाला हूँ। पढ़ाई के लिए यहाँ आया हुआ हूँ।’’
दोनों साथ-साथ चल रहे थे। इन्द्रनारायण की बात सुन रजनी के मुख से निकल गया–‘‘तभी।’’
‘‘तभी क्या?’’
‘‘आपके मोटे खद्दर के कपड़े और यह कोटी आपके देहाती होने को ही तो प्रकट करती है।’’
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