उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इस समय राधा वहाँ आ गयी। उसने आते ही शारदा के गले बाँह डालकर कहा, ‘‘ बहुत मीठी-मीठी बातें हो रही हैं दीदी से?’’
‘‘हाँ, राधा बहन से चोरी-चोरी।’’ शारदा का उत्तर था।
‘‘दीदी और राधा में भला भेद क्यों?’’ राधा ने पूछा।
‘‘यह तो दीदी ही बतायेंगी। मेरे लिये तो दोनों बहनें बराबर हैं।’’
‘‘चलो भाभी! माताजी भोजन के लिये बुला रही हैं।’’
‘‘आज तो भूख नहीं। आप लोगों ने बहुत मिठाई खिला दी है।’’
‘‘चलना तो होगा। जितनी भूख हो, उतना ही खा लेना।’’
रजनी ने बाँह पकड़कर उठाया और उसको रसोई में ले गयी। इन्द्र की माँ और मौसी वहाँ बैठी थीं। शारदा के वहाँ आते ही उर्मिला भी वहाँ आ गयी। सब हाथ धोकर बैठीं तो भोजन परोस दिया गया।
रजनी ने इन्द्र की माँ से पूछ लिया, ‘‘काकी! इन्द्र भैया कहाँ हैं?’’
‘‘वह और उसके भाई तथा पिता जीम गये हैं।’’
इससे रजनी को सन्तोष हुआ। वह समझी कि क्रोध और संशय शांत हो रहा है। अपने मन में तो उसको विष्णु की बात पर किंचित् मात्र भी विश्वास नहीं था। उसे शारदा एक समझदार परन्तु सरल स्वभाव की लड़की प्रतीत हुई थी।
भोजनोपरान्त कुछ देर तक वहाँ रसोईघर में बैठे-बैठे बातें होती रहीं। पश्चात् सौभाग्यवती ने रजनी को कहा, ‘‘रजनी बेटी! शारदा को अपना सोने का स्थान बता दो। यह घर की छत पर सोयेगी।’’
|