उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘सौन्दर्य तो अपने-अपने विचार की बात है। मैं इतना जानती हूँ कि इन्द्र भैया बहुत ही योग्य, सुशील और चरित्रवान् युवक हैं। तुम जैसी सुन्दर और समझदार पत्नी के सर्वथा योग्य पति हैं।’’
‘‘तो मैं भी सुन्दर हूँ क्या?’’
‘‘यह तुमको किसी ने नहीं बताया क्या?’’
‘‘यहाँ आकर आप लोगों के मुख से तो सुना है, परन्तु यह शिष्टाचार भी तो हो सकता है।’’
‘‘अपने पति के मुख से सुनोगी, तब तो विश्वास आएगा।’’
‘‘मुख से सुनने मात्र से नहीं; हाँ, व्यवहार से तो पता चल सकता है।’’
‘‘कैसे व्यवहार से तुम समझोगी कि इन्द्र भैया तुमको सुन्दर मानते हैं?’’
‘‘कोई एक बात हो तो बताऊँ। और फिर मैं अभी कुछ जानती थी तो नहीं।’’
रजनी हँस पड़ी। उसको शारदा एक बहुत ही समझदार लड़की प्रतीत हुई। उसकी बातों में रस और भाव दोनों भरे थे। साथ ही उसने एक भी विषय से बाहर की बात नहीं की थी।
इस पर भी रजनी का मन एक आशंका से भर गया था। वह इन्द्रनारायण की पीत मुख देख आयी थी और समझ रही थी कि रात को विष्णु वाली बात हुए बिना नहीं रहेगी। इस पर भी आशा करती थी कि शारदा अपनी बातों से अपने पति को समझा लेगी।
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