उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
विष्णु इसके उत्तर में कुछ कहने वाला था कि रजनी ने बात काटकर कह दिया, ‘‘काका! विष्णु तो सर्वथा झूठ बोल रहा है। इसमें किंचित् मात्र भी सच्चाई नहीं है।’’
‘‘कैसे कहती हो, रजनी!’’ विष्णु ने रजनी को डाँटते हुए पूछ लिया।
‘‘मैं जानती हूँ। भला इसी में है कि तुम यहाँ से चले जाओ, नहीं तो मुख काला कर गधे पर सवार करके गाँव से निकाले जाओगे।’’
रमाकान्त विष्णु के पीछे खड़ा था। उसने एक लात उसकी कमर में जमाई और बोला, ‘‘मैं इसको वहीं मार डालूँगा।’’
रामाधार ने रमाकान्त को मना करते हुए विष्णु से कह दिया, ‘‘चलो, निकलो बाहर, तुम यहाँ रहने योग्य नहीं हो।’’
रजनी ने रमाकान्त को कुछ नहीं कहा। उसने विष्णु को बाँह पकड़कर उठाया। उसे कमरे से बाहर ले गयी। दरवाजा खोला तो बाहर विष्णु की माँ उसकी बहन साधना और भाभी उर्मिला खड़ी थीं।
विष्णु का मुख काला पड़ गया था लात खाने से उसको चक्कर आने लगा था। वह लड़खड़ाता हुआ कमरे से निकल रहा था कि उसकी माँ ने उसको बाँह से पकड़कर पूछ लिया, ‘‘यहाँ क्यों आये हो, विष्णु?’’
विष्णु कुछ कहना चाहता था, परन्तु उसके मुख से आवाज नहीं निकल रही थी। वे तीनों औरतें उसको बाहर खुली हवा में ले गयीं। प्राँगण में कुआँ था। पद्मा लड़के को वहाँ ले गयी। साधना ने डोल कुएँ में डाल पानी निकाला और उसको पीने को दिया।
उर्मिला बहुत ध्यान से विष्णु के मुख पर देख रही थी। उसको प्रातः काल इन्द्र की ससुराल में हुई वार्ता का ध्यान था। इससे वह विस्मय कर रही थी कि यह यहाँ क्यों आ गया है। प्रातः के अपमान के पश्चात् तो उसको चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए था।
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