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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


यही हल्ला भीतर सुनाई दिया था। रामाधार का रमाकान्त को बुलाने का ऊँचा शब्द सुन रजनी और घर में आई औरतें घर के द्वार पर खड़ी हो गयीं। रमाकान्त विष्णु की घूसों से पिटाई कर रहा था। इन्द्र परेशानी में खड़ा उनको देख रहा था। रजनी भागकर रमाकान्त के हाथ से विष्णु को छुड़ाना चाहती थी कि रामाधार ने विष्णु को बाँह से पकड़कर अपने समीप बिठा लिया और औरतों को भीतर चले जाने के लिये कह दिया। सभी औरतें अन्दर चली गयीं, परन्तु रजनी वहीं द्वार के पास खड़ी रही।

रामाधार ने विष्णु से पूछा, ‘‘क्या बात है, विष्णु?’’

‘‘भीतर चलिये। सबके सामने बताने वाली बात नहीं है।’’

रामाधार एक क्षण तक विचार करता रहा। पश्चात् सब लोगों को एकदम हाथ जोड़कर विदा कर विष्णु से बोला, ‘‘चलो, तुम्हारी भी सुन लूँ।’’

इस समय इन्द्रनारायण ने रजनी को बता दिया, ‘‘विष्णु ने बहू के चरित्र के विषय में बहुत बुरी बात कही है।’’

‘‘क्या कहा है?’’

इन्द्र कुछ कह नहीं सका, चुप खड़ा रहा। इस समय रामाधार विष्णु को लेकर एक कमरे में चला गया। इन्द्र, रमाकान्त और रजनी भी वहाँ जा पहुँचे। विष्णु ने कहा, ‘‘दरवाजा बन्द कर दो।’’

उस कमरे के दरवाजे पर घर की औरतें आ खड़ी हुई थीं। रमाकान्त ने जाकर दरवाजा बन्द कर दिया तो विष्णु ने वहीं बता दी जो उसने इन्द्र को बताई थी।

रामाधार ने कह दिया, ‘‘तुम झूठ बकते हो। तुम ब्राह्मण की सन्तान होते हुए मछली और मुर्गा खा-खाकर बुद्धि खो चुके हो।’’

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