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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


माँ और बहन को विष्णु के पीटे जाने पर दुःख हो रहा था। इस पर भी वे बिना कारण जाने चुप थीं। विष्णु ने पानी पिया। जब उसको कुछ चेतना हुई तो बोला, ‘‘माँ! अब बहुत हो गई है। चलो यहाँ से।’’

इस पर उर्मिला ने पूछ लिया, ‘‘पर तुम यहाँ आये क्यों हो?’’

‘‘इन्द्र का बहू के चरित्र के विषय में बताने। इसी अर्थ प्रातः वहाँ भी गया था।’’

‘‘तुम उसके चरित्र की बात कैसे जानते हो?’’

‘‘भाभी! मैं बहुत कुछ जानता हूँ। यही बात बताई है तो जीजाजी और रमाकान्त ने मार-मारकर मेरा कचूमर निकाल दिया है।’’

‘‘अच्छा चलो। मैं तुम्हारे साथ लखनऊ चलती हूँ। तुम्हारा यहाँ रुकना ठीक नहीं।’’ विष्णु की माँ ने कह दिया।

इतना कह पद्मादेवी ने अपनी लड़की और पतोहूँ को कहा, ‘‘तुम यहाँ ठहरो। मैं कल आऊँगी।’’

‘‘पर माँजी! विष्णु झूठा है। यह दुर्जन है। इसको तो घर से निकाल देना चाहिए। इसके लिये आप अपनी लड़की से झगड़ा करने जा रही हैं।’’ उर्मिला ने बात स्पष्ट कह दी।

‘‘मैं इसके पिता के सामने सब बात कह कल यहाँ आऊँगी। इतनी देर तक तुम ध्यान रखना, रामाधार कुछ अनिष्ट न कर बैठे।’’

ननद-भाभी खड़ी रहीं और पद्मा अपने पुत्र विष्णु को लिये घर से निकल पड़ी।

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