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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


विष्णु से बात करने के पूर्व रामाधार ने अपनी सास से बात करनी उचित समझी। वह उसके पास पहुँचकर बोला, ‘‘काकी! विष्णु ने इस प्रकार यहाँ आकर गड़बड़ मचा दी है।’’

‘‘क्या गड़बड़ हो गयी है?’’ पद्मादेवी ने पूछ लिया। साधना और उर्मिला भी पास बैठी सब बातें सुन रही थीं।

रामाधार ने विष्णु का दो अन्य लड़कों के साथ वहाँ आने का प्रयोजन बता दिया और साथ ही कह दिया कि लड़की का बड़ा भाई कह रहा था कि गाँव में ये लोग ईसाई माने जाते हैं। जब गाँव वालों को पता चला कि ये ब्राह्मण होकर मछली और मांस खाते हैं तो सब हमसे घृणा करने लग जायेंगे और हमारा भी बहिष्कार कर देंगे।

पद्मादेवी को विष्णु की करतूत सुनकर भारी क्रोध चढ़ आया। उसके मुख से निकल गया, ‘‘पाजी, नालायक, मलेच्छ कहीं का।’’ फिर कुछ विचार कर उसने कहा, ‘‘अच्छा, मैं इसको समझती हूँ और कोशिश करती हूँ कि यहाँ से भगा दूँ।’’

इतना कह विष्णु को बुलाकर पृथक् में ले गयी। वहाँ खड़ा कर उसने उससे पूछ लिया, ‘‘तुम यहाँ ताल से मछली पकड़ते रहे हो और उनको भून-भूनकर खाते रहे हो?’’

‘‘हाँ माँ! मुझको मछली बहुत ही स्वादिष्ट लगती है।’’

‘‘यह ब्राह्मणों का कर्म नहीं है, विष्णु!’’

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