उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘रामाधार ने विस्मय प्रकट करते हुए कहा, ‘‘विश्वास नहीं होता। अच्छा मैं पूछूँगा। यह बात यदि सत्य है तो बिना प्रायश्चित्त के यहाँ बैठने नहीं दूँगा।’’
‘‘हमारा यह मतलब नहीं है। यहाँ गाँव में शिकार खेलने के लिये आने वाले रसद-पानी खरीदने आते रहते हैं। कुछ लोग तो अपने खेमे लाते हैं और कई-कई दिन यहाँ टिके रहते हैं। हम इनको भी उनमें से ही समझते थे। गाँव वाले इन छोकरों को पिछले तीन दिन से यहाँ देख रहे हैं। यदि उनको पता चल गया कि ये हमारे सम्बन्धी हैं तो हमको भी प्रायश्चित करना पड़ेगा।’’
‘‘तो आप कह दीजिये, यह लड़के का सहपाठी है। ऐसे ही इनमें सम्मिलित हो गया है।’’
सब बाराती, जो चौदह आदमी थे, उसी धर्मशाला में, जिसमें विष्णु और उसके साथी ठहरे थे, ठहरा दिये गये। उनके लिये जलपान इत्यादि की व्यवस्था होने लगी।
रामाधार विष्णु को ब्राह्मण जाति से पतित समझने लगा था। उसके मन में यह देख कि यह छोकरा और उसके साथी इतनी दूर इसलिये आये हैं कि जीव-हत्या करें और फिर उससे उदर-पूर्ति करें, उनके मन में, उसके प्रति ग्लानि भर गयी थी। वह स्वयं भी विष्णु के साथ पंक्ति में बैठकर खाने में संकोच अनुभव करने लगा था। इस पर भी वह विचार करने लगा था कि विष्णु को किस प्रकार वहाँ से टाले, परन्तु उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था।
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