उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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इरीन की दावत का एक परिणाम और निकला। विष्णुस्वरूप राय साहब सिन्हा के घर पहले इन्द्रनारायण को और पीछे रजनी को मिलने के लिये आने लगा। रजनी अपनी पढ़ाई में लीन थी और वह नहीं समझ सकी कि विष्णु उसके लिये ही उसकी कोठी के चक्कर काटने लगा है। वह समझती थी कि उसके फटकारने से विष्णु को इतना तो समझ लेना चाहिये कि उससे उसके विवाह की कुछ भी आशा नहीं।
लिखित परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। प्रायोगिक परीक्षा हो रही थी। इन्द्रनारायण इसमें सब-कुछ भूला हुआ था। विष्णु कभी आता तो उसके कमरे में कुछ देर बैठकर चला जाता। आते-जाते रजनी से एक-दो बातें हो जातीं।
अंतिम परीक्षा देकर रजनी और इन्द्रनारायण आये तो विष्णु उनकी ही प्रतीक्षा में बैठा था। आज इन्द्रनारायण को अपने गाँव जाने की तैयारी करनी थी। उसका विचार अगले दिन गाँव जाने का था।
कोठी के बरामदे में विष्णु बैठा था। इन्द्र ने पूछ लिया, ‘‘ओह मामा जी! आइये, चाय पीयेंगे क्या?’’
विष्णु रजनी की ओर देख रहा था। उसने उसको नमस्ते की और पूछ लिया, ‘‘कहो, परीक्षा कैसी हुई?’’
‘‘हो गयी है।’’ रजनी ने बस इतना कहा और अपने कमरे की ओर चल पड़ी। विवश हो विष्णु इन्द्र के साथ-साथ चल पड़ा। उसको विदित था कि दोनों के कमरे साथ-साथ हैं।
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