उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
रजनी भी परीक्षा समाप्त हो जाने पर एक बहुत बड़ा बोझा उतर गया अनुभव कर रही थी। उसने अपनी ‘प्रेक्टिकल’ की नोट-बुक अपने कमरे में फेंकी और इन्द्र के कमरे में चली आयी।
विष्णु पहले से ही वहाँ बैठा था। इन्द्र अपनी कुर्सी छोड़ अपनी खाट पर बैठ गया। रजनी कुर्सी पर बैठ पूछने लगी, ‘‘इन्द्र भैया! अब क्या प्रोग्राम है?’’
विष्णु भी प्रश्न-भरी दृष्टि से इन्द्र का मुख देखने लगा। इन्द्र ने उत्तर में कह दिया, ‘‘कल गाँव चला जाऊँगा।’’
‘‘मैं पूछ रही हूँ कि ससुराल जाने का मुहूर्त कब है?’’
‘‘बीस मई को।’’
‘‘कौन-कौन जा रहा है?’’
‘‘यह मुझको पता नहीं।’’
‘‘राधा जा रही है अथवा नहीं?’’
‘‘उस चुड़ैल को जाकर क्या करना है?’’
‘‘परन्तु यहाँ एक चुड़ैल और भी है जो जाना चाहती है।’’
‘‘तुम! तो ठीक है। फिर मेरे जीने की क्या आवश्यकता है? तुम सब लोग जाओ और उसको ले आओ।’’
‘‘किसको?’’
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