उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘हम अपनी आँखों से देख आयी हैं।’’
‘‘क्या देख आयी हो?’’
‘‘उसको अपने मामा से बगलीदार होते हुए।’’
‘‘अरी, मामा तो बाप के बराबर होता है।’’
‘‘पर वह मामा तो बेगम से भी एक-आध साल कम उमर का लगता था।’’
‘‘तो तुम क्या चाहती हो?’’
इस पर फातिमा ने अपने मन की बात कह दी। उसने कहा–‘‘मैं तो यह चाहती हूँ कि शहजादे सरवर को आप यहाँ ले आइये। मैं उसकी परवरिश करूँगी और उसके बड़े होने पर यह जमींदारी उसी के नाम कर दीजिएगा। सरवर को यहाँ कुरान पढ़ाइये और एक ईमान वाला मुसलमान बनने का मौका दीजिये।’’
बड़े नवाब फातिमा की तजवीज सुनकर फड़क उठे। मगर इस सब को अमल में लाने के लिये तजवीज इतनी आसान नहीं थी, जितना इसका कह देना आसान था।
इस पर भी नवाब साहब को मार्ग दिखाई देने लगा था। वह इस काफिर औरत के पंजे से अपनी जमींदारी बचाने के लिये विचार करने लगे।
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