उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
बड़े नवाब साहब चुप हो गये। मगर बात खत्म नहीं हुई। बड़े नवाब की एक रखैल थी। नवाब साहब तो उसको रखैल ही मानते थे, मगर वह अपने को बेगम से कम नहीं मानती थी। अपनी दो बीवियों के देहान्त के पश्चात् नवाब साहब में तीसरी शादी करने के लिये उत्साह नहीं रहा था। इस पर भी हरम में बिना किसी खूबसूरत औरत के देखे बिना उनको चैन नहीं आया। इसलिये बाराबंकी से इस वेश्या को बेगम बनाने का लालच देकर ले आये। इस प्रकार वह अपने को बेगन मानने लगी, मगर नवाब साहब उसको रखैल ही मानते रहे। यह फातिमा थी।
अनन्तर एक के बाद दूसरी, इसी तरह तीन औरतें आयीं और नवाब साहब के हरम में चहल-पहल होने लगी। इन पीछे आने वालियों को वह रोब और रुतबा नहीं मिला, जो फातिमा का था।
दावत से लौटकर जब नवाब गाँव पहुँचे तो फातिमा के नेतृत्व में तीनों औरतों ने नवाब साहब को चुनौती दे दी। उनका कहना था, ‘‘हजरत! अगर इस्लाम की आबरू मिट्टी में नहीं मिलानी तो अनवर और उसकी बीवी को ताल्लुकेदारी से दस्तबरदार करना होगा।
‘‘क्यों?’’
‘‘एक रईस के घर में वैसी बीवी नहीं रह सकती। वह एक फाहिशा औरत है।’’
‘‘क्या सबूत है इसका तुम्हारे पास?’’
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