उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
उस दिन जब सब मेहमान चले गये तो बड़े नवाब साहब अपने लड़के के सामने ड्राइंग-रूम में बैठते हुए बोले–‘‘अनवर! खुदा का फजल है कि यह दावत खैर-खैरियत से गुजर गयी है।’’
‘‘क्यों आपको कुछ गड़बड़ की उम्मीद थी?’’
‘‘ऐसे मजमे में जो कुछ भी हो जाये, वह मुमकिन है। देखो न, बेगम का बाप उस मोटी-सी औरत की कमर में हाथ डाले हुए उस झाड़ी के पास कितनी देर तक खड़ा रहा था। वह लौंड़ा विष्णु तुम्हारी बेगम से हँस-हँसकर ऐसे बातें कर रहा था, मानों वह उसके इश्क में सराबोर हो रहा है।’’
यह सुन अनवर हँस पड़ा। इरीन उस समय अपने माता-पिता को अपने सोने के कमरे में कुछ बता रही थी। अनवर की हँसी सुन इरीन मेहमानों को विदा कर ड्राइंग-रूम में चली आयी। नवाब साहब यह पसन्द नहीं करते थे। उन्होंने कह दिया, ‘‘जरा दूसरे कमरे में बैठो। हम अपनी प्राइवेट बात कर रहे हैं।’’
इरीन भौचक्की हो खड़ी रह गयी। शीघ्र ही उसने अपने-आपको सँभाला और चुपचाप दूसरे कमरे में चली गयी। वह ड्राइंग-रूम के बाहर खड़ी हो कुछ देर विचार करती रही। फिर वह बगल के कमरे में चली गयी।
बड़े नवाब ने अपने लड़के से कहा, ‘‘देखो अनवर! यह अंग्रेजी पौधा तुमने इस हिन्दुस्तानी जमीन में लगाया है। या तो जमीन ऊसर हो जायेगी या पौधा यहाँ सड़ जायेगा।’’
‘‘अब्बाजान! कुछ भी नहीं होगा। इस पौधे के साथ अंग्रेजी खाद भी यहाँ लाई गयी है। वह जहाँ पौधे की परवरिश करती है, वहाँ जमीन को भी ताकतवर रखती है।’’
‘‘कहाँ है वह खाद?’’
‘‘वह अंग्रेजी लिटरेचर है। उसको पढ़कर हम यहाँ के रहने वाले ऐसे अंग्रेजी पौधों, जैसी बेगम है, को अपने में फलते-फूलते देख सकते हैं।’’
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