उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘ढाई लाख रुपया फर्नीचर सहित।’’
‘‘सब फिजूल गया है। यह किसी शरीफ आदमी के रहने लायक जगह नहीं है।’’
‘‘अब्बाजान! यह आपके लड़के ने अपने रहने के लिये बनवाई है। साथ ही मैं समझता हूँ कि मैं बिल्कुल शरीफ हूँ।’’
‘‘मगर क्या शरीफ रह सकोगे यहाँ रहकर?’’
‘‘उम्मीद कामल है।’’
इस वक्त भी बात टल गयी। सुन्नत के संबंध में जश्न के समय जब बड़े नवाब और अन्य रिश्तेदार लखनऊ इस कोठी में आये तो कोठी के चारों ओर कनातें लगा दी गयीं और कुछ कमरे स्त्री-वर्ग के लिये पृथक् कर दिये गये। उनके दरवाजों के बाहर दुहरी कनातें लगा दी गयीं। रिश्तेदारों की औरतें बन्द गाड़ियों में और डोलियों में आयीं। उनमें भी वे बुर्का पहनकर आ सकीं। बड़े नवाब ने हुक्म दे दिया कि छोटी बेगम के रिश्तेदारों और मित्रों में पार्टी तभी की जा सकेगी, जब वह वायदा करे कि नवाब साहब के सम्बन्धियों की दावत के दिन वह सारा समय जनानखाने में ही रहेगी, मुसलमानी ढंग की पोशाक पहनेगी और पूरी सावधानी से पर्दे में रहेगी।
इरीन ने नवाब साहब की शर्त पूरी की तो फिर इरीन के सम्बन्धियों तथा परिचितों के लिये भी चाय-पार्टी का प्रबन्ध हो गया। चाय-पार्टी में लड़के-लड़कियों, औरतों तथा मर्दों का आपस में हेल-मेल और किसी की पत्नी को किसी दूसरे के खाविन्द के साथ लॉन में घूम-घूमकर बातें करते देख बड़े नवाब साहब के दिल में धड़कन पैदा होने लगी थी और इस धड़कन का प्रदर्शन ही उन्होंने इन्द्रनारायण से किया था।
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